लखनऊ की वर्षा वर्मा बनी लावारिस लाशों के लिए फरिश्ता।
शव वाहन में इंधन की लागत और महंगी पीपीई किट की वजह से बिना किट पहनकर ही रही है शवों का दाह संस्कार।
लखनऊ : समाज से इंसानियत पूरी तरह खत्म नहीं हुई है यह विश्वास कराया है, लखनऊ की वर्षा वर्मा ने। कोरोना महामारी जैसी गंभीर स्थिति में जहां एक ओर लोगों ने संक्रमण से बचने के लिए खुद को एक चार दीवारी में कैद कर लिया है। अस्पतालों और घर पर दम तोड़ने वाले मरीजों को जब उनके अपने ही लावारिस की तरह सड़कों पर छोड़ देते हैं। गरीबों को शव ले जाने के लिए शव वाहन भी नहीं मिलते तब ऐसे लोगों की वर्षा मदद करती है। वर्षा किसी फरिश्ते से कम नहीं है। कोरोना काल में अपनों द्वारा छोड़ी हुई लावारिस लाशों का दाह संस्कार करती हैं। हमारे समाज में ऐसी मान्यता है कि श्मशान घाट पर महिलाएं नहीं जाती है, ऐसे में उनका दाह संस्कार करना चर्चा का केंद्र बना हुआ है।इतना ही नहीं लावारिस लाशों के लिए वह नि:शुल्क शव वाहन भी चलवा रही हैं। जिस पर उन्होंने मोबाइल नंबर लिखा रखा है। इस तरह से कई लोगों ने उनसे मदद भी ली। 2020 के लॉकडाउन में भी वर्षा ने 10 से अधिक लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कराया था ।
निभा रही हैं इंसानियत का फ़र्ज़
वर्षा ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि वह एक महिला हैं,एक मां हैं,एक बेटी हैं,और एक पत्नी भी।लेकिन वह इन सबसे बढ़कर खुद को एक इंसान मानती है।अपनी जिंदगी इसी इंसानियत के फ़र्ज़ को निभाते हुए बिताना चाहती हैं। वर्षा कहती हैं, लॉकडाउन में जब लोग अपने घरों में कैद हो गए थे, इस दौरान मेरी नजर एक लावारिस लाश पड़ी उसका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था। शहर में तमाम तरह की सामाजिक गतिविधियों में रहने वाले लोगों का भी ध्यान इस ओर नहीं गया। तो मैंने निश्चय कर लिया कि जिसका कोई नहीं उसका साथ दूंगी ।इस काम में उन्हें दीपक महाजन का साथ मिला ,जो एक दिव्य कोशिश नाम की संस्था के अध्यक्ष है।
बिना पीपीई किट पहनकर शव का करती हैं अंतिम संस्कार
वर्षा ने आगे बताया कि कोरोना मरीज की मौत के बाद उसके अपने सदस्य भी छूने से डरते हैं ।लोग पीपीई किट पहनकर शव के पास जाते हैं ,कई बार उनके पास भी पीपीई किट भी नहीं होती तब भी उन्हें शव का दाह संस्कार करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि वैन में इंधन की लागत हर रोज अधिक होती है,किट भी महंगी पड़ती है। उनके पास इतना धन और संसाधन नहीं है। इसलिए वह भी बिना पीपीई किट पहनकर ही शव को ले जाती हैं।
कई कहानियों का वर्षा ने किया ज़िक्र
वर्षा ने बताया कि कई लोग उनकी सेवा का मिस यूज करते हैं सोमवार की सुबह 7:30 बजे एक कॉल आया कि कृष्णानगर में एक महिला की डेथ हो गई है ।वह महिला किराए पर रहती है और दाह संस्कार के लिए उसका कोई नहीं है। वर्षा ने बताया कि गाड़ी लगातार व्यस्त थी जैसे ही मौका मिला गाड़ी लेकर दोपहर 1:00 बजे पहुंची और देखा कि एक फॉर्च्यूनर कार में कुछ रिश्तेदार बैठे थे ,उन्होंने शव को हाथ तक नहीं लगाया ,हालांकि वह शमशान तक लेकर आई,फिर रिश्तेदारों ने दाह संस्कार किया।
90 किलो का शव उठाना था काफी मुश्किल
वर्षा ने दूसरी कहानी का जिक्र करते हुए बताया कि गोमती नगर में एक कोरोना मरीज की मौत हो गई ।मदद के लिए कॉल आई तो वह अपनी वैन लेकर पहुंच गई।शव के साथ सिर्फ उनकी पत्नी थी कुछ लोग दूर से खड़े होकर तमाशा देख रहे थे ।कोई भी शव को हाथ लगाने के लिए तैयार नहीं था । 90 किलो वजन के शव को अकेले पैक करके वाहन में रखना और श्मशान तक लाना उनके लिए बहुत कठिन था ,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी ।कष्ट इस बात का था कि तमाम रिश्तेदारों ने उनसे दूरी बना ली थी।
जब कोई समाज सेवा के लिए ठान लेता है तो ,उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं होती है इसी तरह से वर्षा ने भी किसी तरह का सरकारी सहयोग नहीं लिया। वर्षा अपने संसाधन से कोरोना मरीजों को शमशान पहुंचा रही है, ड्राइवर पेट्रोल अन्य संसाधन जुटा रही हैं ।वर्षा की ‘एक कोशिश ऐसी भी ‘ नाम की संस्था भी है।