कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों की स्थिति जानने को लेकर चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि हम नहीं जानते कि सरकार और किसानों के बीच क्या बातचीत हो रही है. हम इसपर एक जानकारों की समिति बनाना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सरकार तब तक इस कानून पर रोक लगा दे. अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो हम ही कानून पर स्टे लगा देंगे.
किसान आंदोलन से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र सरकार के रवैये से नाखुश है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि वह कानून पर स्टे लगाएगी या फिर कोर्ट ही स्टे लगा दे? कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार का इस मामले पर रवैया काफी निराशाजनक है.
कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों की स्थिति जानने को लेकर चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि हम नहीं जानते कि सरकार और किसानों के बीच क्या बातचीत हो रही है. हम इस पर एक जानकारों की समिति बनाना चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सरकार तब तक इस कानून पर रोक लगा दे. अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो हम ही कानून पर स्टे लगा देंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुविधा कि स्थिति तक इस कानून पर स्टे लगा दीजिए. इसे प्रतिष्ठा का सवाल क्यों बनाया जा रहा है? कोर्ट ने कहा कि किसान आंदोलन की स्थिति बदतर होती जा रही है. लोग आत्महत्या कर रहे हैं, इस ठंड में सड़क पर बैठे हैं. उनके खाने पीने का ख्याल कौन रख रहा है? क्या वहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है? कोर्ट ने कहा कि हमें यह समझ में नहीं आ रहा है कि वरिष्ठ लोगों और महिलाओं को इस ठंड में आंदोलन में क्यों शामिल किया गया है. अगर इन लोगों को कुछ होता है तो हम सब जिम्मेदार होंगे. हम किसी के खून से अपने हाथ नहीं रंगना चाहते हैं.
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को फिलाहल इस कानून को लागू नहीं करना चाहिए. किसानों के जवाब और मीडिया में चल रही खबरें से यही लगता है कि उन्हें इस कानून से दिक्कत है. कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि हमें समझ नहीं आता है कि आप लोग समाधान का हिस्सा हैं या समस्या का. बता दें कि 15 जनवरी को किसानों और सरकार के बीच होने वाली बातचीत से पहले कोर्ट की टिप्पणी काफी अहम है.