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एडवाइजरीः फसलों में कीट लगने का है मौसम, किसान बचाव के कर लें उपाय

 जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने किसानों को दी सलाह, मौसम में उतार-चढ़ाव फसलों पर कीटों के हमले का मौका

नोएडाः गौतमबुद्ध नगर जिले के जिला कृषि रक्षा अधिकारी किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने कहा कि खरीफ फसलों में मुख्यतः धान, मक्का, मूंगफली, उर्द, मूंग एवं गन्ना प्रमुख फसल है। वर्तमान में प्रदेश के विभिन्न जिलों में वर्षा एवं तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण फसलों में लगने वाले सामायिक कीट, रोगों के प्रकोप की काफी सम्भावना होती है। इसे ध्यान में रखकर कीटों और रोगों से बचाव एवं प्रबन्धन की इस समय सख्त जरूरत है।

क्या करें किसान

धान के लिएः

  • संकरी एवं चौडी पत्ती खरपवार- इस प्रकार के खरपवारों के नियंत्रण के लिए प्रेटिलाक्लोर 50 प्रतिशत ईसी 1.5 लीटर या एनीलोफास 30 प्रतिशत ईसी 1.25-1.5 लीटर या पाइराजोसल्फ्यूरान इथाइल 10 प्रतिशत डब्ल्यूपी 0.15 किलोग्राम को 500-600 लीटर पानी में घोलकर फ्लैटफन नॉजिल से 2 इंच भरे पानी में रोपाई के 3 से 5 दिन के अन्दर छिड़काव करें। विसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत एससी 0.200 लीटर रोपाई के 15-20 दिन के बाद की स्थिति में 300 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
  • दीमक एवं जड़ की सूडी-इस पर नियंत्रण के लिए क्लोरमाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटरप्रति हेक्टेयर की दर से सिचाई के पानी के साथ प्रयोग करें।
  • खैरा रोग-खैरा रोग के नियंत्रण के लिए 5 किलोगाम जिंक सल्फेट को 20 किलोगाम यूरिया या 2.50 किलोग्राम बुझे हुए चूने को प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
  • तना छेदक- तना छेदक से बचाव के लिए फरोमोन ट्रेप (एसबी ल्योर) 6-8 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए तथा इसके रासायनिक नियंत्रण हेतु क्यूनालफॉस 25 प्रतिशत ईसी 1.5 लीटर या कलोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.2 ली0 अथवा फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस0सी0 1.0-1.5 लीटर 500-600 लीटर का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4जी0 की 18 किग्रा0 मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 3-5 सेमी0 स्थिर पानी में बिखेर कर प्रयोग करें।
  • पत्ती लपेटक- पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण हेतु क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 अथवा क्यूनालफॉस 25 प्रतिशत ई0सी0 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।
  • जीवाणु झुलसा एवं जीवाणुधारी रोग-जीवाणु झुलसा एवं जीवाणुधारी रोग के नियंत्रण हेतु स्यूडोमोनास फ्लोरियेन्स 2 प्रतिशत ए0एस0 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत + टेट्राइसाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 15 ग्राम मात्रा को 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी के साथ मिलाकर 500-700 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

मक्का-

  • मक्का में तना बेधक कीट का प्रकोप 10 प्रतिशत मृतगोभ की आर्थिक क्षति स्तर पर हाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई0सी0 अथवा क्लोरेन्ट्रनिलिप्रोल 200 मिली0 अथवा इन्डाक्साकार्ब 500 मिली0 प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
  • फाल आर्मी वर्म कीट के नियंत्रण हेतु स्पीनेटोरम 11.7 प्रतिशत एस०0सी0 0.5 मिली0 क्लोरेन्ट्रनिलिप्रोल 18.5 प्रतिशत ई0सी0 0.4 मिली0 अथवा थायोनेक्साम 12.6 प्रतिशत+लैम्डा साईहैलोथि्न 9.5 प्रतिशत जेड0सी0 0.25 मिली0 को प्रति ली0 पानी में घोल बनाकर भूहा (Tassel) की अवस्था से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।

मूँगफली-

  • मूँगफली में टिक्का रोग की रोकथाम हेतु मैन्कोजेब अथवा जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण की 2 किग्रा0 मात्रा को 500-600 ली0 पानी में घोलकर आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।
  • पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण हेतु प्रभावित भाग को तोड़कर नाशीजीव के अण्डे समूह एवं इल्लियों को मिट्टी में दबाकर नष्ट कर देना चाहिए तथा एजाडिरेक्टिन 0.03 प्रतिशत डब्लू0एस0पी0 2.5 ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
  • अरहर की फसल में बन्झा (स्टेरिलिटी मोजैक) रोग से प्रभावित पौधों को उखाड़ कर मिट्टी में दबाकर नष्ट कर देना चाहिए तथा डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई0सी0 1 ली0 मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।

उर्द / मूँग-

  • पीला चित्तवर्ण रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर मिट्टी में दबाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • खेत एवं मेडों को खरपतवार से मुक्त रखे।
  • स्टिकी ट्रैप 6-8 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
  • रोग के वाहक कीट सफेद मक्खी के रसायनिक नियंत्रण हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई0सी0 1 ली0 मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति है0 की दर से आवश्यकता अनुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 छिड़काव करने का सुझाव दिया गया।

गन्ना—

  • गन्ने की फसल में पाइरिल्ला कीट से बचाव हेतु फसल की नियमित निगरानी करने के साथ-साथ पायरिला के प्राकृतिक शत्रु कीट एपीरिकोनिया मेलोनोल्यूका का फसल वातावरण में संरक्षण किया जाना चाहिए। परजीवी कीट की पर्याप्त उपस्थिति में पाइरिल्ला का स्वतः रोकथाम हो जाता है।
  • गन्ने की फसल में टॉप बोरर (चोटी बेधक) कीट के प्रकोप की स्थिति में ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 50000-60000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से 3 बार प्रयोग करना चाहिए। टी0एस0बी0 ल्योर 6-8 प्रति हे0 की दर से भी प्रयोग कर चोटी बेधक कीट का नियंत्रण किया जा सकता है। रासायनिक नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरान 3 जी 30 किग्रा0 अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 1.5 ली0 अथवा मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत एस0एल0 1.5-2.25 ली0 प्रति हे0 की दर से 600-800 ली0 पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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