उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल संपर्क: इच्छाशक्ति और इंजीनियरिंग का अद्भुत संगम

नोएडा: उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल परियोजना के उद्घाटन के साथ जम्मू-कश्मीर ने कनेक्टिविटी की दिशा में एक ऐतिहासिक छलांग लगाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना को भारत की इच्छाशक्ति और तकनीकी क्षमता का “विराट उत्सव” बताया।
पीर पंजाल में असंभव को किया संभव
जो काम कभी एक सपना लगता था, उसे भारतीय इंजीनियरों ने साकार कर दिखाया। दुनिया के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में गिने जाने वाले पीर पंजाल की पहाड़ियों को पार करते हुए रेल लाइन बिछाना किसी चमत्कार से कम नहीं है।
असंख्य चुनौतियों को किया पार
इस परियोजना के रास्ते में अनेक प्राकृतिक बाधाएं थीं — रिसते हुए पहाड़, चार सौ फीट गहरी खाइयां, और भूस्खलन से गिरते पत्थर। लेकिन इंजीनियरों ने कभी हार नहीं मानी और हर मुश्किल को पार करते हुए काम को अंजाम दिया।
इतिहास रचने वाली परियोजना
प्रधानमंत्री मोदी ने इस ट्रैक पर देश की सबसे बड़ी तीन सुरंगों, दुनिया के सबसे ऊंचे आर्च ब्रिज और भारत के पहले केबल-स्टे रेल पुल को राष्ट्र को समर्पित किया। हर मोड़ पर इस परियोजना ने इतिहास रचा है।
100 साल से ज्यादा पुराना सपना अब साकार
रेलवे को कश्मीर तक पहुंचाने का सपना एक सदी से भी पुराना है। 1972 में जम्मू तक रेल पहुंची, लेकिन कश्मीर तक की यात्रा अधूरी रह गई थी। अब इस सपने को साकार कर देश ने एक नई मिसाल पेश की है।
परियोजना का टाइमलाइन
1981: जम्मू-उधमपुर रेल लिंक को मंजूरी
1994: श्रीनगर तक विस्तार की घोषणा
1995-2002: अलग-अलग खंडों पर काम की शुरुआत
2005 से 2024 तक: चरणबद्ध तरीके से सभी खंडों का उद्घाटन
रेल संपर्क की कुछ अनोखी बातें
यह ट्रैक देश की तीन सबसे लंबी रेलवे सुरंगों का घर है
दुनिया का सबसे ऊंचा आर्च ब्रिज इसी मार्ग पर बना है
भारत का पहला केबल स्टे रेलवे ब्रिज भी इसी परियोजना का हिस्सा है
11 किमी लंबी T-50 सुरंग, जो देश की सबसे लंबी है
T-44 सुरंग, जो देश की तीसरी सबसे बड़ी रेल सुरंग है
कुल 272 किमी के मार्ग में 36 मुख्य सुरंगें बनाई गई है
कश्मीर से ट्रेन का अब सीधा रिश्ता
अब कश्मीर भारत के रेल नेटवर्क से पूरी तरह जुड़ चुका है। यह न केवल यात्रा को आसान बनाएगा, बल्कि पर्यटन, सामाजिक और आर्थिक विकास को भी नई ऊंचाई देगा।