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उत्तर प्रदेशगौतम बुद्ध नगरवाराणसी

…और अस्पताल में हो गई फिल्मी अंदाज में शादी

कैसे हुई शादी, किसी इच्छा से हुई, कौन बने बराती और पंडित

 वाराणसी। आइए आपको ऐसी शादी से रूबरू करवाते हैं जो अभी तक फिल्मों में ही होते आई है। हकीकत में इक्का-दुक्का मामला ऐसा मिलता है। आखिरी सांस लेते बुजुर्ग की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए होने वाला दामाद आया सामनेऔर लोगों के देखते ही देखते अपनी होने वाली पत्नी की मांग को सिंदुर से भर दिया।

दरअसल, गाजीपुर जिले के एक बुजुर्ग का शरीर लकवाग्रस्त हो गया था। उनका इलाज गाजीपुर में ही हो रहा था। बुजुर्ग को जब लगा कि उनका अंतिम समय निकट आ गया है तो उन्होंने अपने परिजनों से वाराणसी में इलाज कराने की इच्छा जाहिर की। परिजन उन्हें वाराणसी के कबीर चौरा स्थित मंडलीय अस्पताल ले गए और इलाज के लिए भर्ती करा दिया। बुजुर्ग के साथ उनकी बेटी भी थी। बेटी की शादी वाराणसी में ही होने की बातचीत चल रही थी लेकिन विवाह की तमाम बाते अभी तय नहीं हुई थी।

वहां जब उनके होने वाले रिश्तेदारों को ये जानकारी हुई तो तो वे बुजुर्ग को देखने हॉस्पिटल आए। अपने होने वाले रिश्तेदारों को को जब बुजुर्ग ने देखा तो उनके आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। अपुष्ट शब्दों एवं इशारों से उनके बेटी की शादी उनके सामने हो जाए, ऐसी उन्होने आखिरी इच्छा जताई। लेकिन ऐसा कहीं होता है, अभी तो दहेज की रकम भी तय नहीं हुई थी। कितने बराती कब आएंगे। तिलक बरक्षा कुछ भी तय नहीं हुआ था। सबमें खुसुर-पुसुर होने लगी। किसी ने 100 नंबर डायल कर पुलिस को भी बुला लिया, लेकिन यहां तो माजरा ही कुछ और था अस्पताल के एक बेड पर एक बुजुर्ग जिसका आधा शरीर लकवाग्रस्त हो चुका था, अस्पष्ट लड़खड़ाती आवाज कुछ इशारे और कुछ आंसुओं से अपनी आखिरी तमन्ना के रूप में अपनी बेटी की शादी देखना चाहता था। मरणासन्न बुजुर्ग के पायताने चरणों को पकड़े बेटी चुपचाप रो रही थी और दूर सिरहाने होने वाला दामाद निर्लिप्त भाव से खड़ा था। यहां तो आज पुलिस वाले भी दोस्त बन गए, डॉक्टरो ने दवा के साथ भावनाओं की भी खुराक परोस दी। अस्पताल के अन्य कर्मियों ने भी विवाह के सामाजिक रस्म निभाने की बजाय सिन्दूर की वास्तविक कीमत समझाया। अन्य मरीज के परिजन ने आशीर्वाद की महत्ता समझाई। खास कर एक आखिरी सांस गिनते पिता के आशिर्वाद की। पल भर में ही दृश्य बदल गया। दवा के साथ ही चुटकी भर सिन्दूर आया। बुजुर्ग का बेड ही पवित्र हवन कुण्ड बन गया। अगल बगल के मरीज बराती बन गए। डॉक्टर जयेश मिश्रा पंडित बने।  लोगों की तालियां बैंड बाजा। परिजनो की दुआ मन्त्रोच्चार बनी। बूढ़े पिता के आसूं दूल्हा दुल्हन के लिये सबसे बड़ा आशीर्वाद ।

बुजुर्ग ने बेटी और दामाद को आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठाया तो उठा ही रह गया। इसप्रकार बिल्कुल फिल्मी अंदाज में मरते बुजुर्ग की इच्छा को पूरा करने के लिए अस्पताल में ही शादी हो गई।

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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