नवजोत सिंह सिद्धू का बगावती तेवर हमेशा से रहा है क्रिकेट के गलियारों से लेकर सियासी रजवाड़ों तक सिद्धू ने बड़े-बड़े धुरंधरों के खिलाफ अपने बगावती तेवर दिखाए हैं अगर बगावती सूची की बात की जाए अरुण जेटली, मोहम्मद अजहरुद्दीन और कैप्टन अमरिंदर सिंह का नाम शामिल है ।
नवजोत सिंह सिद्धू ने क्रिकेट और राजनीति में अपने ही लोगों की ख़िलाफ़त करने में कोई कसर नही छोड़ी, पूरे देश में नवजोत सिंह सिद्धू सिर्फ दो ही वजह से प्रसिद्ध हैं। एक तो “वाह गुरु” दूसरा कारण है उनके बगावती तेवर नवजोत सिद्दू ने जिसको राजनीति का गुरु बनाया उसके खिलाफ भी बगावत करने में नहीं चूके । बात अगर की जाए क्रिकेटर के तौर पर दौरा बीच में छोड़कर जाना हो या फिर राज्यसभा से इस्तीफा देकर दल बदलू बन जाना हो, इन्हीं मायनों में सिद्धू एकदम खरे उतरते हैं अपने बगावती सुरों से हमेशा लाइमलाइट में बने रहते हैं ।
अगर आप क्रिकेट प्रेमी है तो आपको याद होगा 1996 के इंग्लैंड दौरे के वक्त नवजोत सिंह सिद्धू कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन से बगावत करके बीच दौरे में ही भारत लौट आए थे । इस बात को लेकर काफी बवाल मचा था और सिद्धू के बारे में कहा गया था की एक खिलाड़ी को संयमित होना चाहिए । मोहम्मद अजहरुद्दीन नवजोत सिंह सिद्धू की बगावत के पहले शिकार थे,
फिर 2004 में नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति के क्षेत्र में आ गए भाजपा के टिकट पर अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे अगर आपको याद हो तो ठीक है नहीं तो हम आपको याद दिला देते हैं । उस वक्त पटियाला निवासी गुरनाम सिंह को पार्किंग विवाद के दौरान पीटने के आरोप में नवजोत सिंह सिद्धू पर एक मुकदमा चल रहा था । सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे अरुण जेटली ने सिद्धू की पैरवी की और सिद्धू को जमानत मिली ।
अपनी सियासी पारी में नवजोत सिंह सिद्धू ने अरुण जेटली को अपना राजनीतिक गुरु बनाया जैसे 2014 में बीजेपी ने यहां से अरुण जेटली को अपना उम्मीदवार बनाया तो सिद्धू ने अपने गुरु के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और चुनाव ना लड़ने का फैसला किया । इसमें कोई शक नहीं नवजोत सिंह सिद्धू शुरू से ही महत्वाकांक्षी रहे हैं यही कारण है कि उनका दल बदलू अभियान अभी तक चालू है ।
किसी समय नवजोत सिंह सिद्धू बिक्रम सिंह मजीठिया और सुखबीर सिंह बादल के एक ही थाली के चट्टे बट्टे थे और उनकी शान में सर्वत्र कसीदे पढ़ते हुए नजर आते थे अचानक ऐसा क्या हुआ कि नवजोत सिंह सिद्धू ने अकाली दल की आलोचना शुरु कर दी । उनके कुछ विवादित बयानों ने तत्कालीन भाजपा प्रधान कमल शर्मा को काफी परेशानी में डाल दिया देखते ही देखते सिद्धू की अकाली दल के साथ रार इतनी बढ़ गई किसकी सिद्धू ने सार्वजनिक मंचों से अकाली दल को भ्रष्टाचारी, केवल माफिया, खनन माफिया जैसे शब्दों से संबोधित करना शुरू कर दिया उसके साथ ही जिस पार्टी के दम पर नवजोत सिंह सिद्धू सांसद बने उन्हीं भाजपा नेताओं को लपेटना शुरू कर दिया । उस समय नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू मुख्य संसदीय सचिव थी । अप्रैल 2016 में सिद्धू राज्यसभा सांसद बने लेकिन वहां भी उनकी बगावत नहीं थमी और शपथ ग्रहण के 3 महीने बाद राज्यसभा से किनारा कर लिया । तब राजनैतिक गलियारों में यह कयास लगाया जाने लगा कि कि नवजोत सिंह सिद्धू अरविंद केजरीवाल के पाले में खेल सकते हैं और पंजाब से वही आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे लेकिन इसके विपरीत उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनावों से कुछ सप्ताह पहले कांग्रेस का चोला ओढ़ लिया । उससे पहले उन्होंने आवाज ए पंजाब फोरम का गठन किया था जिसमें बैंस बंधु और परगट सिंह भी शामिल थे ।
पंजाब में चल रही सियासी उठापटक के बीच आलाकमान पर दबाव डालने का प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का यह आखिरी पैंतरा है । पार्टी प्रधान पद से इस्तीफा देने के बाद सिद्धू के पास दबाव बनाने का कोई और चारा नहीं बचा । पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों के मुताबिक कैप्टन अमरिंदर सिंह को किनारे करने में सिद्धू का जितना उपयोग किया जा सकता था उतना उपयोग हो चुका है । कैप्टन को हटाने के तुरंत बाद ही आलाकमान ने सिद्धू की अनदेखी शुरू कर दी थी । शुरुआती दौर में सिद्धू को सिर माथे पर लेकर चल रही कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व अचानक ही सिद्धू से मुखर हो गया और चन्नी कैबिनेट में सिद्धू के फैसले को दरकिनार कर दिया गया । आलाकमान का संदेश स्पष्ट है कि पंजाब में चन्नी की संरक्षण में ही यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी ।
2022 के चुनाव में पंजाब में कांग्रेस को सत्ता दिलाने का दम भरने वाले नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे ने सबको चौंका दिया है हालांकि कहीं न कहीं ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को किनारे करने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को सहारा लिया था । ऐसे भी कयास लगाया जा रहा है कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी है नहीं दिए जाने के बाद से ही इसकी पटकथा लिखना शुरू हो गई थी । इसके बाद चन्नी के साथ घूमने के दौरान सिद्धू का सुपर सीएम का चेहरा सामने आने लगा था और पार्टी स्तर पर ही उनकी आलोचना शुरू हो गई थी जिसके बाद नवजोत सिंह सिद्धू एकांतवास में चले गए थे ।
यह भी रही हैं नवजोत सिंह सिद्धू की बगावत की वजह
सुपर सीएम की पार्टी में आलोचना से नाराज थे नवजोत सिंह सिद्धू ।
मुख्यमंत्री के नाम पर आलाकमान की रजामंदी नहीं मिलना ।
एडवोकेट जनरल डीजीपी और मंत्रिमंडल विस्तार में नहीं सुनी गई ।
रंधावा को गृह विभाग देने के बाद टूटा सब्र और इस्तीफा दे दिया ।