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कोरोना ने छीना विद्यार्थियों का अधिकार ,जिसका प्रभाव होगा आज से लेकर भविष्य तक

ई -शिक्षा बच्चों पर डाल रही है बुरा असर, डायनेस जैसी कई गंभीर बीमारियां ले रहीं है जन्म

लखनऊ : वैसे तो कोरोना महामारी ने देश की हर व्यवस्था को तितर -बितर कर दिया है। आर्थिक व्यवस्था पर इसका प्रभाव तो पड़ा ही है ,इसके साथ ही शिक्षा पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा है। निचले स्तर की कक्षाओं से लेकर बड़े स्तर तक की कक्षाओं तक विद्यार्थियों को इसकी मार झेलनी पड़ रही है। आर्थिक व्यवस्था को धीरे धीरे पटरी पर लाया जा सकता है। लेकिन जिस तरह से विद्यार्थियों की पढ़ाई में क्षति हुई है, इसका प्रभाव आज से लेकर कल तक पड़ेगा। तकरीबन एक साल से ज्यादा समय हो रहा है जब से देश के स्कूल बंद है। 2021 में स्कूल खुलने के आसार लगने लगे थे कि एक बार फिर कोरोना वायरस ने अपनी दहशत पैदा कर दी, जो पहले से कई गुना खतरनाक है। जाहिर है विद्यार्थी घर पर रहकर ही ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन या उतना प्रभावशाली नहीं है जितना विद्यालयों में रहकर विद्यार्थी पढ़ाई करते रहे हैं।

ऑनलाइन शिक्षा नहीं है प्रभावशाली
जैसा कि आप सभी जानते हैं मार्च 2020 में आए कोरोनावायरस की वजह से देश की हालत बद से बदतर हो गई है। जिसमें एजुकेशन भी शामिल है। संक्रमण ने विद्यार्थियों की पढ़ाई को इस तरह से नुकसान पहुंचाया है जिसकी भरपाई करना भविष्य में काफी मुश्किल होगा। इसका उनकी जॉब पर पड़ेगा क्योंकि अच्छी शिक्षा ना मिलना यानी भविष्य में उनको नौकरी के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना है। आप अपने घरों में स्वयं ही देख पा रहे होंगे कि ई – शिक्षा बच्चों की पढ़ाई किस तरह से कराई जा रही है। ऑनलाइन माध्यम से ना तो विद्यार्थी सही से चीजों को समझ पा रहे हैं और ना ही शिक्षक समझा पा रहे हैं। स्कूलों की कक्षाओं में जिस तरह से शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच आई कांटेक्ट के जरिए अंदाजा लगाया जा सकता था कि कौन सा बच्चा चीजों को समझ रहा है और कौन सा नहीं ,वह ऑनलाइन के जरिये नहीं समझा जा सकता है। पढ़ाई के अलावा स्कूलों में विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच तालमेल , खेलकूद, मनोरंजन, कम्युनिकेशन स्किल को बढ़ाना व अन्य एक्टिविटी कराई जाती थी ,जो ऑनलाइन माध्यम से संभव नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो शिक्षक और विद्यार्थी दोनों केवल फॉर्मेलिटी के तौर पर काम कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण अध्यापकों को उनकी सैलरी ना मिलना जिसकी वजह से मानसिक तनाव व अन्य चींजे हैं और बच्चों के मन में स्कूल वर्क को लेकर किसी तरह का डर न होना है ।

ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क की समस्या
ग्रामीण क्षेत्रों में ना तो हर किसी के पास स्मार्टफोन है और ना ही सही तरह का नेटवर्क। जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों से पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को इन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि लगभग हर अभिभावक स्मार्टफोन की व्यवस्था धीरे-धीरे करने लगे हैं लेकिन आर्थिक व्यवस्था मजबूत ना होने पर उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। रुपयों की समस्या होते हुए भी, अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन की व्यवस्था कर रहे हैं। लेकिन नेटवर्क समस्या होने की वजह से ऑनलाइन पढ़ाई का पूरी तरह से लाभ ग्रामीण बच्चे नहीं उठा पा रहे हैं। परिवार में एक ही स्मार्टफोन होने की वजह से बच्चों के पढ़ाई में बाधा आती है ,क्योंकि कभी-कभी मोबाइल उनके पेरेंट्स बाहर लेकर चले जाते हैं। समय पर मोबाइल ना मिलने पर कक्षा में अनुपस्थिति दर्ज़ हो जाती है ।ऐसी समस्यांओं पर सरकार को विचार करने की आवश्यकता है। इसके अलावा यह भी सोचने की जरूरत है कि ऑनलाइन पढ़ाई के अलावा बच्चों के मानसिक विकास को लेकर क्या नई वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है।

मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल पड़ रहा है बच्चों पर भारी
देश में डिजिटलाइजेशन जितना ही लाभदायक साबित हुआ है उतना ही हानिकारक भी है। वैज्ञानिक शोध निष्कर्ष में पाया गया है कि मोबाइल से रेडिएशन निकलती है जो हानिकारक होती है। इससे पाचन शक्ति कमजोर और नींद कम आने की बीमारी हो सकती है। हमारे मस्तिष्क में 90 फ़ीसदी तक पानी होता है यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को एब्जॉर्ब करता है जो आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है।यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एक शोध के अनुसार मोबाइल को वाइब्रेशन मोड पर ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने से कैंसर का खतरा बढ़ता है। घर पर अकेले रहना बच्चों को बच्चों को मानसिक तनाव धकेल रहा है। क्योंकि वे अपने दोस्तों के साथ ना तो बातचीत कर पा रहे हैं और ना ही उनके साथ खेल का मौका मिल पा रहा है। जिसकी वजह से वह ठीक से पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं ।

 

80 फ़ीसदी बच्चों में हो रही है डायनेस की समस्या
मोबाइल से निकलने वाला वितरण बच्चों की आंख के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। क्योंकि लगातार मोबाइल स्क्रीन पर देखने से आंखों का ब्लिंकिंग रेट कम हो रहा है। आंखों का ब्लिंकिंग रेट 15 से 16 पाया जाता है। लेकिन मोबाइल स्क्रीन पर लगातार बने रहने से ब्लिंकिंग वेट 6 से 7 के निम्न स्तर पर पहुंच गया है। मोबाइल को लगातार देखने पर आंखों में धुंधलापन की शिकायत आ रही है। 80 फ़ीसदी बच्चों में डायनेस की समस्या देखी जा रही है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ चिंतामणि का कहना है कि यदि आंखों का ब्लिंकिंग सामान्य नहीं रहा तो इसका प्रभाव ब्रेन पर भी पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। आंखों के साथ कानों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

 

बच्चों द्वारा मोबाइल का किया जा रहा है गलत इस्तेमाल
ई -लर्निंग के दौरान बच्चे अक्सर अपने कमरे में ही‌ बैठकर पढ़ाई करते हैं ताकि उन्हें किसी तरह का बाधा न हो। लेकिन क्या वे वास्तव में पढ़ाई ही‌ कर रहे हैं या मोबाइल पर गेम या अन्य चीजें देख रहे हैं इसकी जिम्मेदारी बच्चों के अभिभावकों की है। खास तौर पर देखा जाता है बच्चे पढ़ाई की आड़ में मोबाइल पर गेम या वीडियो देखते हैं। जिसका असर न केवल उनकी पढ़ाई पर होता है बल्कि उनके मस्तिष्क पर भी पड़ता है। क्योंकि जिस तरह कि वे तस्वीरें और वीडियोस देखते हैं उसकी छवि उनके मस्तिष्क में बन जाती हैं कई घंटों तक वह उन्हीं चीजों के बारे में सोचते रहते हैं। जिसकी वजह से उन्हें पढ़ाए गए टॉपिक या अन्य चींजे याद नहीं रहती जिसका सीधा असर परीक्षाओं के अंकों पर पड़ता है। प्रत्येक अभिभावकों को इन बातों पर ध्यान देना चाहिए । समय-समय पर बच्चों की क्रियाओं -कलापों पर निगरानी करने की जरूरत है।

NGO ‘s की ली जा सकती है मदद
ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर कई तरह की समस्याएं देखी जा रहीं हैं। जिस तरह से कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। हालातों को देखकर लगता है कि यह वायरस लंबे समय तक टिका रहने वाला है। अब ऐसे में विद्यार्थियों को आगे भी ऑनलाइन माध्यम ही अपनाना पड़ेगा। जिस तरह से मोबाइल और मोबाइल नेटवर्क की समस्या का सामना ग्रामीण छात्र छात्राओं को करना पड़ रहा है, उस तरह से सरकार को किसी तरह का अन्य वैकल्पिक समाधान निकालने की जरूरत है। इसके अलावा एक ऐसा विकल्प भी निकालने की जरूरत है जिसके माध्यम से विद्यार्थी पढ़ाई के अलावा अन्य चीजें भी सीख सकें। गैर सरकारी संगठनों की भी मदद ली जा सकती है।

 

मधुमिता वर्मा

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