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खनन माफिया और प्रशासन में तू डाल-डाल, मैं पात-पात वाला खेल, माफिया के लिए मिट्टी बनी सोना

जिला टास्क फोर्स ने छापों की संख्या बढ़ाई, करोड़ों की गाड़ियां  जब्त की हैं, पर माफिया सक्रिय

ग्रेटर नोएडा (मुकेश पंडित) : खनन माफिया के लिए नोएडा और ग्रेटर नोएडा की जमीनें सोना उगल रही हैं। यह ऐसा सशक्त तंत्र है, जिस पर पूरी तरह से काबू पाना प्रशासन और खनन विभाग के लिए काफी कठिन है। हालांकि खनन विभाग समय-समय पर सख्त रूख अपनाता है, किंतु अवैध खनन पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। डीएम के निर्देश पर गठित टास्क फोर्स के साथ मिलकर खनन विभाग ने बड़ी कारवाई भी की हैं और भारी-भरकर जुर्माना वसूला भी किया है।
खनन विभाग की सक्रियता से 93 वाहन जब्त किए
विभागीय अधिकारियों के अनुसार, डीएम के निर्देश पर खनन विभाग काफी सक्रिय हुआ है। खनन माफिया के खिलाफ अगस्त में जहां 55 छापे की कारवाई की गई। सितंबर माह में छापे की कारवाई की संख्या बढ़कर 93 तक पहुंच गई। खनन अधिकारी के अनुसार, सितंबर में 93 गाड़ियां, जेसीबी व पोपलेन मशीने जब्त की गईं और 31 लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया। डीएम द्वारा गठित टास्क फोर्स में खनन विभाग के अफसरों के साथ परिवहन और पुलिस विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं। छापेमारी के दौरान अवैध रूप से बालू और मिट्टी ले जा रहे ट्रेक्टरों को भी किया गया।
खनन माफिया का खेल
लगातार निर्माण कार्य चलते रहने से नोएडा की जमीनें सोना उगलती हैं। रात का अंधेरे में खनन माफिया सक्रिय हो उठते हैं और रातभर जेसीबी से जमीनों का सीना चीर कर मिट्टी निकाली जाती है। फ्री बराबर यह मिट्टी काफी अच्छी कीमतों पर बेची जाती है। असल में रातों-रात जेसीबी, पोकलेन मशीनों के जमीन में दस से पंद्रह फीट तक ग़ड्ढे कर दिए जाते हैं। यह सारा खेल प्राधिकरण के नियोजित सेक्टरों की जमीनों को लेवल करने के नाम पर गड्ढों में तब्दील कर दिया जाता है। इस खेल में प्राधिकरण के अफसर और कर्मचारी संलिप्त रहते हैं। ऐसे में ग्रेटर नोएडा से लेकर यमुना प्राधिकरण तक मिट्टी का खनन करने वाले माफिया सक्रिय रहते हैं। यह लोग आवासीय से लेकर औद्योगिक, संस्थागत योजनाओं के लिए प्राधिकरण मास्टर प्लान में आने वाले गांवों की जमीनों को किसानों से क्रय कर लेते हैं और फिर खोदाई करके बाजार में मिट्टी बेचकर मोटी कमाई करते हैं।
तीन से चार हजार रुपये प्रति डंपर बिकती है मिट्टी
बाजार में मिट्टी की मांग को पूरा करने के लिए खनन माफिया जमकर चांदी काटते हैं। एक ट्राली मिट्टी की कीमत करीब डेढ़ हजार रुपये व एक डंपर मिट्टी की कीमत तीन से चार हजार रुपये है। एक ही रात में माफिया लाखों रुपये के वारे न्यारे कर लेते हैं। स्थानीय थाने और चौकी की पुलिस को मंथली दी जाती है। कई बार प्राधिकरण की परमिशन दिखाकर भी मिट्टी माफिया अपनी गाड़ी को निकालकर ले जाने में सफल रहते हैं।
प्राधिकरण देता है मिट्टी खनन की अनुमति
दरअसल, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण अपने क्षेत्र में मिट्टी खनन के लिए अनुमति देता है। सेक्टर में सड़क आदि के निर्माण या सड़क और भूखंडों का लेवल ठीक करने के लिए खनन की अनुमति दे दी जाती है, लेकिन खनन की गई मिट्टी का उपयोग उसी क्षेत्र में सड़क आदि के कार्य में करना होता है, इसकी आड़ में मिट्टी का जरूरत से अधिक खनन होता है।
जहां हैं, जैसा है के आधार पर मिलता है आवंटी को कब्जा
मिट्टी के अवैध खनन से होने वाले नुकसान से प्राधिकरणों ने पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया है। भूखंड योजना निकालते समय भी प्राधिकरण यह शर्त रख देते हैं कि आवंटित भूखंड जहां है, जैसा है, उसकी स्थिति में कब्जा लेना होगा। यानी अगर भूखंड में गड्ढे हैं तो उसमें मिट्टी का भराव करने की जिम्मेदारी आवंटी की खुद की होगी प्राधिकरण की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। यहीं से खनन का अवैध खेल शुरू हो जाता है। हैरानी की बात है कि जिला प्रशासन टास्क फोर्स बनाकर खनन रुकवाता और अवैध खनन पकड़ता है और प्राधिकरण खनन की इजाजत देता है।

 

 

 

 

 

Mukesh Pandit

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के हापुड़ शहर (अब जिला) में जन्म। एसएसवी पीजी कालेज से हिंदी एवं समाजविज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा। वर्ष 1988 से विभिन्न समाचार पत्रों दैनिक विश्वमानव, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, दैनिक जागरण में रिपोर्टिंग और डेस्क कार्य का 35 वर्ष का अनुभव। सेवानिवृत्त के बाद वर्तमान में फेडरल भारत डिजिटल मीडिया में संपादक के तौर पर द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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Mukesh Pandit

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के हापुड़ शहर (अब जिला) में जन्म। एसएसवी पीजी कालेज से हिंदी एवं समाजविज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा। वर्ष 1988 से विभिन्न समाचार पत्रों दैनिक विश्वमानव, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, दैनिक जागरण में रिपोर्टिंग और डेस्क कार्य का 35 वर्ष का अनुभव। सेवानिवृत्त के बाद वर्तमान में फेडरल भारत डिजिटल मीडिया में संपादक के तौर पर द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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