जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने फिर दी 57 वर्ष पुरानी पश्चिमी उत्तर में हाईकोर्ट बेंच की मांग को हवा
शुरू हुई कयासबाजी, प्रदेश की योगी सरकार चुनाव से पहले कर सकती है घोषणा?
नोएडा (मुकेश पंडित) : पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग एक बार फिर जोर पकड़ सकती है। जेवर के विधायक धीरेंद्र सिंह ने वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़े मामले को फिर बहस के केंद्र ला दिया है। उन्होंने अनूपशहर विधायक संजय शर्मा के साथ विधि मंत्री अर्जुन मेघवाल से नई दिल्ली में मुलाकात की और पत्र सौंपकर उनके समक्ष हाईकोर्ट बेंच का मुद्दा उठाया। केंद्र विधि मंत्री ने बेहद सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और कहा कि केंद्र सरकार पउ प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वह इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीफ जस्टिस के समक्ष उठाएंगे। इसके बाद कयासबाजी शुरू हो गई है कि क्या प्रदेश सरकार चुनाव से पहले इसकी घोषणा कर सकती है? आइए जानते हैं इसकी पूरी पृष्ठभूमि।
वर्ष 1967 से चल रही है मांग
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग 1967 से चली आ रही है। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने वकीलों से कहा था कि यहां पर हां कर दूंगा, लेकिन मामला लखनऊ में फंस जाएगा। वह पेंच आज तक फंसा हुआ है। इसमें किसी भी केंद्रीय मंत्री या सांसद ने अभी तक बेंच की स्थापना की पहल नहीं की है। 1967 में चौधरी चरण सिंह ने इनकार कर दिया था, उसके बाद से आज तक राजनीतिक स्तर पर कोई पहल नहीं हुई। जबकि अधिवक्ता लगातार संघर्ष करते आ रहे हैं। ब्रिटिश काल में वर्ष 1866 से 1868 तक नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस के आगरा में हाईकोर्ट था। बाद में उसे प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 1956 में आल इंडिया हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं की बैठक हुई, जिसमें आगरा में पुन: हाईकोर्ट स्थापित करने की मांग उठाई गई थी।
हाईकोर्ट में 75 प्रतिशत मुकदमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन 75 प्रतिशत मुकदमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के हैं। पश्चिमी यूपी के वादकारी को 700 किलोमीटर की दूर तय करनी पड़ती है। इस कारण यह सुलभ और सस्ता न्याय की संविधान में प्रदत भावना के अनुरूप नहीं है।
एक तारीख में दस हजार रुपये होते हैं खर्च
वकीलों का कहना था कि एक बार हाईकोर्ट जाने में एक मुवक्किल के कम से कम दस हजार रुपये खर्च होते हैं, जबकि आने जाने में दो दिन का समय और परेशानी अलग से होती है। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद पहुंचने पर जैसे ही वहां के लोगों के पता चलता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए हैं तो किसी भी चीज का दोगुना वसूलते हैं। अगर कोई अधिकारी मुकदमें में पेश होता है तो उसका खर्चा सरकारी कोष से जाता है, लेकिन अधिवक्ता और मुवक्किल को स्वयं खर्च करना पड़ता है।
कई महीने तक चल चुकी है हड़ताल
हाईकोर्ट बेंच की मांग को लेकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में कई बार लंबी हड़ताल चली है। इसमें जनता ही परेशानी हुई। शासन ने भी लखनऊ बेंच की स्थापना कर दी थी, जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी किसी जिले में स्थापित किया जा सकता था। कुछ वकीलों का यह भी मानना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना नहीं की जाती है, तब तक लखनऊ बेंच में कार्य क्षेत्र संबद्ध कर दिया जाए। लखनऊ में जुड़ने से धन और समय दोनों की बचत होगी। इस बीच मेरठ में पिछले दिनों हुई हाईकोर्ट बैंच की मांग को लेकर वकीलों ने आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया था। इस मांग को लेकर वकील शनिवार को हड़ताल पर रहते हैं। अब हड़ताल को प्रभावी बनाने की तैयारी की जा रही है। हाईकोर्ट बैंच स्थापना संघर्ष समिति ने शनिवार की हड़ताल को और धार देने का निर्णय लिया है।
अचानक मामला उठाने से शुरू हुई कयासबाजी
जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने अचानक केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन मेघवाल से मुलाकात करके उनके समक्ष पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बैंच का मुद्दा उठाया है, उससे यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि संभव है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की योगी आदित्यनाथ की सरकार कोई बड़ा निर्णय लेने जा रही है। धीरेंद्र सिंह की इस पहल को काफी सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि धीरेंद्र सिंह के जरिए सरकार नब्ज टटोलने का काम कर रही है।
दूरी का वजह से न्याय में देरी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना के लिए अधिवक्ताओं और स्थानीय लोगों द्वारा लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि आधारित जीवन यापन करने वाले किसानों की बड़ी संख्या है। भूमि से जुड़े मामलों के लिए लोग हाईकोर्ट जाते हैं, लेकिन लंबी यात्रा और सुनवाई में देरी के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
– धीरेंद्र सिंह, भाजपा विधायक, जेवर