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कांवड़ नामपट्टी मामला : उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा, खानपान की शुद्धता और विवाद टालना ही उद्देश्य

नई दिल्ली(फेडरल भारत न्यूज) : कांवड़ मार्ग में दुकानों, ढाबों और ठेलों पर नाम लिखे जाने के मामले में शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके अपनी सफाई दी। सरकार ने कहा कि इस आदेश का उद्देश्य कांवड़ियों को खानपान के बारे में जानकारी देना था ताकि उन्हें सनातन परंपरा के अनुसार शुद्ध और सात्विक भोजन खाने को मिल सके। क्योंकि कई बार खाने को लेकर गलतफहमी के कारण विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे तनाव पैदा होता है, जो कानून-व्यवस्था की स्थिति कायम करने में चुनौती बन जाता है। सरकार ने इस संबंध में दायर की गई याचिकाओं को लेकर भी अपना विरोध जताया।

आपसी विवाद की वजह बनता है गलत खानपान
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने हलफनामे में कहा कि राज्य सरकार ने खाद्य पदार्थ विक्रेताओं के व्यापार या व्यवसाय पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई गई। सभी अपना व्यवसाय स्वतंत्र रूप से करने के लिए स्वतंत्र हैं। हलफनामे में कहा गया कि मालिकों क नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कावंड़ियों के बीच संभावित किसी भी भ्रम की स्थिति को दूर करना था। .कांवड़ यात्रा के दौरान खाने में प्याज-लहसून का इस्तेमाल भी कई बार झगड़े की वजह बन जाता है। ऐसे में पारदर्शिता लाने और विवाद टालने के लिए उपाय किए गए।

Mukesh Pandit

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के हापुड़ शहर (अब जिला) में जन्म। एसएसवी पीजी कालेज से हिंदी एवं समाजविज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा। वर्ष 1988 से विभिन्न समाचार पत्रों दैनिक विश्वमानव, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, दैनिक जागरण में रिपोर्टिंग और डेस्क कार्य का 35 वर्ष का अनुभव। सेवानिवृत्त के बाद वर्तमान में फेडरल भारत डिजिटल मीडिया में संपादक के तौर पर द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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Mukesh Pandit

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के हापुड़ शहर (अब जिला) में जन्म। एसएसवी पीजी कालेज से हिंदी एवं समाजविज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा। वर्ष 1988 से विभिन्न समाचार पत्रों दैनिक विश्वमानव, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, दैनिक जागरण में रिपोर्टिंग और डेस्क कार्य का 35 वर्ष का अनुभव। सेवानिवृत्त के बाद वर्तमान में फेडरल भारत डिजिटल मीडिया में संपादक के तौर पर द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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