दिल्ली की बाढ़ के लिए यमुना को ही जिम्मेदार ठहराते ‘बेशर्म ‘ नेताओं जरा सुनो !
नवीन पाण्डेय,नोएडा। दिल्ली में आईटीओ के आगे राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि पर अक्सर देश और दुनिया के बड़े नेता श्रद्धांजलि देने आते हैं, लेकिन आज यमुना नदी अपने किनारे तोड़कर राजघाट के गेट पर पहुंची है- शायद उसको बापू से शिकायत करनी है या अपनी पीड़ा बतानी है। बाकी इस धरती पर चलते फिरते लोगों से शायद उसको अब कोई उम्मीद नहीं है।
कैसे दिल्ली के भाग्य विधाताओं ने अपने लालच और हवस में पिछले कई सालों में उसका दिल्ली से ‘ गुजरना ‘ तक हराम कर दिया। नदी अगर मीडिया के कैमरों के आगे बोल पाती तो एक सवाल ज़रूर पूछती-
बेकाबू विकास की अंधी दौड़ और वोटों के लालच में मेरे वजूद से खेलने में क्यों लगे हैं ये भाग्य विधाता ? तो प्रतीकों से हटकर ज़मीनी सच्चाई की बात करें तो देश की राजधानी दिल्ली को डूबते पूरा देश ही नहीं पूरी दुनिया देखकर हैरान है। लाल किले के बाहर नाव चलते, राजघाट के गेट तक पानी जाते, आईटीओ जैसे पॉश इलाके में पानी भर जाना सबको हैरान करता है।
इसके अलावा दर्जनों गांवों से लोगों, उनके जानवरों का रेस्क्यू देखकर लगता ही नहीं, आप दुनिया के एक बड़े शहर की तस्वीरें देख रहे हैं। दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले विशाल देश की राजधानी, देश की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश की राजधानी, जहां संसाधनों की कोई कमी नहीं होनी चाहिए, जहां प्रधानमंत्री सहित देश के दर्जनों भाग्य-विधाता
रहते हैं, जहां पिछले आठ साल से खुद को कट्टर ईमानदार और आम आदमी
कहने वाले केजरीवाल जी सरकार है, फिर भी दिल्ली का ऐसा बुरा हाल। जिस दिल्ली को केजरीवाल ने लंदन-पेरिस बनाने का वादा करके जनता का भरोसा जीता था, हाल ही में 380 झीलें बनाने का ऐलान भी किया, उसकी ऐसी ‘महादुर्गति ‘। कहा जा रहा है कि ‘जी, ये तो कुदरती आपदा है, इतनी ज़्यादा बारिश हो गई, हम क्या करें, बाकी स्टेट भी तो डूबे हैं ‘ ।
तो जान लीजिए- सच्चाई क्या है, जो आपकी आंखें खोल देगी । नेता सत्ता के लालच में किस तरह देश के संसाधनों को बर्बाद होते देखते रहते हैं और फिर सारा दोष बेचारी यमुना नदी पर डाल देते हैं, जिसकी सफाई कराने के नाम पर पिछले बीस साल में अरबों रुपये डकारे जा चुके हैं।
दिल्ली में आसमान से यमुना के आसपास के इलाकों का नजारा देखेंगे तो आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी। यमुना किनारे बसे लोगों का बुरा हाल है। इंसानों के साथ पशुओं को बचाने की बड़ी समस्या आ गई है।
यमुना ने सालों बाद ऐसा रौद्र रूप दिखाया है कि जैसे सब कुछ डुबोने पर आमादा है। जलस्तर रिकॉर्ड तोड़ते हुए 208 मीटर के भी पार पहुंच गया । कह सकते हैं कि देश की राजधानी में बाढ़ जैसे हालात नहीं, बल्कि भीषण बाढ़ का कहर टूट रहा है। हजारों लोगों को सुरक्षित इलाकों से निकाला जा रहा है। बाढ़ग्रस्त इलाकों में घर, दुकान पानी में डूब चुके हैं। रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है। दिल्ली में जो यमुना प्रदूषण और लगातार अतिक्रमण से किसी नाले जैसी हो गई थीं, अब वह इतना विकराल रूप ले चुकी हैं कि त्राहिमाम मचा है। अब सवाल उठता है कि हालात इतने बिगड़ने के लिए क्या केवल ज़्यादा बारिश होना या हथिनी कुंड बैराज से पानी छोड़ देना ही जिम्मेदार है, या वाकई नेताओं ने असली खेल खेला है।
एक्सपर्ट का इस बारे में साफ कहना है कि बारिश इसके लिए अकेले जिम्मेदार नहीं है। दिल्ली में जिन दिनों बारिश घट गई, उन्हीं दिनों बाढ़ का प्रकोप बढ़ा। हरियाणा में हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। यमुना एक्टिविस्ट और साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स के एसोसिएट कोऑर्डिनेटर भीम सिंह रावत ने केन्द्रीय जल आयोग के डेटा के हवाले से बताया कि इस साल हथिनी कुंड से पिछले सालों के मुकाबले कम पानी छोड़ा गया है। डेटा बताता है कि 2019 और 2013 में 8 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा गया था, जबकि इस बार हथिनीकुंड बैराज से 3 लाख 59 हजार पानी ही छोड़ा गया। जिन सालों में इससे भी ज़्यादा पानी छोड़ा गया था, तब बाढ़ क्यों नहीं आई और इस बार क्यों आ गई। तो सुनिए इसका सबसे बड़ा कारण है यमुना के रास्ते में जबरदस्त अतिक्रमण। इसके अलावा दूसरे कारण जो जिम्मेदार हैं, वे बताते हैं कि ज़्यादा बारिश के पानी को निकलने के जो इंतजाम थे, उनको किस तरह पिछले सालों में बर्बाद किया गया। इसमें कोई शक नहीं कि अपर यमुना बेसिन में भारी बारिश हुई, लेकिन उसका पानी कहीं तो जाएगा- तो इंतजाम क्यों नहीं किए गए, क्यों नहीं इसके बारे में समय रहते सोचा गया। विकास का मॉडल तैयार करते समय यमुना को कैसे भूल गए? दिल्ली में 22 किमी के नदी के रास्ते में 25 पुल बनाए गए हैं, जो कुदरती बहाव को प्रभावित करते हैं। हर 800 मीटर की दूरी पर एक पुल है। इसके अलावा नदी में गाद यानी सिल्ट जम गई है, जो साफ नहीं करवाई गई, इसकी जिम्मेदारी भी क्या हथिनी कुंड की है ?
सबसे गंभीर समस्या ये है कि बाढ़ के मैदान का अतिक्रमण कर लिया गया है और प्रशासन कुछ नहीं कर पाया। वेटलैंड की ज़मीन पर अवैध कब्जे हैं, वोट बैंक की सियासत के चलते केजरीवाल सरकार कोई एक्शन नहीं लेती।
कई बार तो ‘ ग़रीबों को उजाड़ों नहीं, बल्कि बसाओ ‘ नारा दिया जाता है, ताकि वोट बैंक मजबूत बने- लेकिन ये किस कीमत पर किया जा रहा है।
ग़रीबों को मदद करने और भी तो तरीके हैं। जब अवैध बस्ती बस गई है तो उसका मल मूत्र, कूड़ा करकट सब यमुना में ही जाता है। बाढ़ के जिस मैदान को अतिरिक्त पानी के लिए खाली छोड़ा जाना चाहिए था, वहां कूड़ा पड़ता है और सरकार आंख में पट्टी बांधकर दिल्ली को लंदन बनाने में लगी थी। डूब क्षेत्र में इतने पक्के निर्माण हो गए हैं कि बहता पानी न तो धरती में जा पाता है और न भाप बनकर उड़ पाता है। पानी के आसानी से निकासी के लिए बेहतर ड्रेनेज सिस्टम नहीं बनाया गया। ऊपर से यमुना के ऊपरी हिस्से में कई बांध बनाए गए हैं, जहां से बरसात में अतिरिक्त पानी छोड़ना ही पड़ेगा।
एक्सपर्ट का कहना है कि नदियों के पास अपना फ्लडप्लेन यानी बाढ़ का मैदान होता है जो 5-10 किमी चौड़ा होता है। ऐसे में जब पानी ज्यादा आता है तो बाढ़ नहीं आती क्योंकि आसानी से वह अतिरिक्त पानी बह जाता है और इंसानी रिहायश की तरफ पानी नहीं पहुंचता है। हालांकि आईटीओ के आगे
यमुना के पश्चिमी हिस्से पर कोई फ्लडप्लेन नहीं है। विकास के नाम पर उस जगह पर कब्जा कर लिया गया है। 5 किमी के बाढ़ के मैदान में पानी इकट्ठा होने के लिए वेटलैंड होता है, जो एक्सट्रा पानी को समेट लेता है। हालांकि न सिर्फ फ्लडप्लेन सिकुड़ा है बल्कि कैचमेंट वेटलैंड भी गायब हो गए हैं।’
इसके अलावा ब्रिज नदियों के बहाव को संकुचित करते हैं, अगर आप ज़्यादा पुल बना रहे हैं तो उसके लिए बहाव को कंट्रोल करने के लिए दूसरा रास्ता
भी बनाना ही होगा। दिल्ली में वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज के 22 किमी के हिस्से में औसतन 800 मीटर पर 25 पुल बन गए हैं। पुल के किनारों सिल्ट जमा होने से ये पुल बाढ़ के पानी के सामान्य तरीके से बहाव को रोकते हैं और नदी की हाइड्रोलॉजी को भी प्रभावित करते हैं। यमुना के ऊपरी हिस्से में खनन और तल में जमा सिल्ट या कीचड़ को मशीन से साफ करने की गतिविधियां जारी हैं। ये सब दिल्ली वाले हिस्से में नहीं हो पाती, क्योकि वहां आसपास कब्जे हो गए हैं। ऐसे में शहर में रिवरबेड का लेवल बढ़ता है और गाद जमा होता है। यह इंसानों के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि नदी अपने आप गाद को बहा नहीं सकती।
यमुना की दुर्गति के लिए केजरीवाल सरकार या सालों तक निगम में राज करती रही बीजेपी कितनी जिम्मेदार है, तो केवल इतना जान लीजिए नदी किनारे अवैध कब्जों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती। जहां निर्माण प्रतिबंधित है, वहां धड़ल्ले से नई कॉलोनियां बसाईं जा रही हैं।
‘O जोन’ यानी नदी का वो इलाका जहां किसी भी तरह का निर्माण प्रतिबंधित है, उसमें धड़ल्ले से अवैध निर्माण होते रहे। एनजीटी ने कभी यमुना किनारे खेती तक पर प्रतिबंध लगाया हुआ था, वहां अब खेती तो छोड़िए अवैध पक्के निर्माण तक धड़ल्ले से होते रहे हैं। दिल्ली डिवेलपमेंट अथॉरिटी ने 2020 में एनजीटी को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसके मुताबिक यमुना के फ्लडप्लेन में करीब 960 हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण हो गया, यहां तक कि सरकार भी यमुना के आंचल में निर्माण से नहीं हिचकी। यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन, कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज, मिलेनियम पार्क बस डिपो इसके जीते-जागते सबूत हैं। इन सबका निर्माण ‘O’ जोन में ही हुआ है।
बात चाहे पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार और आस-पास के इलाकों की हो या फिर दक्षिण दिल्ली के मदनपुर खादर की या फिर नॉर्थवेस्ट दिल्ली में वजीराबाद और आसपास के इलाकों की हो, हर जगह यमुना में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ। डीएनडी से लेकर गीता कॉलोनी, ओखला, वजीराबाद और पल्ला बेल्ट तक अतिक्रमण ही अतिक्रमण। यमुना के एकदम किनारे नई-नई कॉलोनियां उगती जा रही हैं। जैतपुर एक्सटेंशन, सोनिया विहार, राजीव नगर जैसी कॉलोनियां इसके उदाहरण हैं। तो कुदरत से छेड़छाड़ होगी तो उसका बुलडोजर एक न एक दिन चलेगा ही। ऐसा लग रहा है कि हमने दिल्ली में यमुना की जो दुर्गति की है, उसका बदला लेने पर उतारू है नदी। आप दिल्ली में रहते हों या दिल्ली के बाहर, देश की राजधानी के लिए आपके मन में एक गर्व की भावना होगी, लेकिन सत्ता के लालच में अंधे नेताओं ने राजधानी की धमक को डुबो दिया है..
नोट: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।