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लखनऊ

काल बना लखनई-आगरा एक्सप्रेसवे : ड्राइवर को लगी झपकी, सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी के पांच युवा डॉक्टरों की जान गई

लखनऊ (FBNews/ Agency):उत्तर प्रदेश की इत्र नगरी कन्नौज के तिरवा क्षेत्र में लखनऊ-आगरा  एक्सप्रेसवे पर बुधवार की प्रात:काल भीषण सड़क हादसे में सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी के पांच युवा डाक्टरों की दुखद मौत हो गई। इस दर्दनाक घटना ने सभी को झकझोर दिया। इस हादसे ने हमारे सड़क सुरक्षा तंत्र की खामियों की कड़वी सच्चाई को भी उजागर कर दिया है। अधिकतर एक्सप्रेसवे मौत का रास्ता बनते जा रहा है।

शादी समारोह से लौट रहे थे युवा चिकित्सक
लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे पर तिरवा में बुधवार तड़के करीब साढ़े तीन बजे यह हादसा उस वक्त हुआ, जब तेज रफ्तार स्कार्पियो डिवाडर को तोड़ते हुए दूसरी लेन में आ गई और एक ट्रक से टकराकर चकनाचूर हो गई। इस स्कार्पियो में सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी के पांच युवा चिकित्सकों समेत छह लोग सवार थे, जिनमें पांच की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि एक ही हालत गंभीर बनी हुई है। सभी चिकित्सक पीजी कर रहे थे। सभी शादी समारोह अटैंड करके लखनऊ से वापस लौट रहे थे। मौके पर पहुंची पुलिस ने गाड़ी को काटकर सभी शवों को बाहर निकाला। मृतकों की पहचान अनिरुद्ध(29 वर्ष), संतोश खुमार मौर्य, अरुण कुमार, नरदेव पुत्र रामलखन बरेली के रूप में की गई है। एक अन्य की तत्काल शिनाख्त नहीं हो सकी।
ओवरस्पीड और झपकी हादसे का कारण
पुलिस का कहना है कि शुरुआती जांच में डाक्टर को झपकी आने और ओवरस्पीड की वजह से हादसा हुआ। स्कार्पियो ने पहले डिवाइडर को तोड़ा फिर पलटी खाते हुए दूसरी लेने में पहुंच गई, जहां तेज रफ्तार ट्रक की चपेट में आने से हादसे का शिकार हो गई। एक्सप्रेसवे पर भीषण हादसे से एकबार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। आइए करते हैं इनकी पड़ताल
हादसे और चालक की भूमिका
पुलिस ने प्रारंभिक छानबीन में दुर्घटना का मुख्य कारण ड्राइवर की झपकी और थकान बताया गया है। परंतु सवाल है कि क्या इसके लिए सिर्फ ड्राइवर को ही जिम्मेदार ठहरा कर पटकथा तैयार की जा सकती है। जब हम किसी को देर रात ड्राइव करने के लिए कहते हैं, तो हम जानबूझकर अपनी जान जोखिम में डाल रहे होते हैं। कई अध्ययनों और आंकड़ों से बार-बार यह साबित हुआ है कि रात के समय यात्रा करने से दुर्घटनाओं की संभावना काफी बढ़ जाती है। जब तक कोई आपातकालीन स्थिति न हो—जैसे फ्लाइट पकड़ना या किसी आपातस्थिति में शामिल होना—आधी रात को यात्रा करना टाला जा सकता है। ड्राइवर की थकान और झपकी के खतरों को उजागर करना अत्यंत आवश्यक है। दुर्भाग्यवश, हमारी व्यवस्थागत विफलताएं इस समस्या को और बढ़ा देती हैं।
डेटा संग्रह में विफलता
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के परिवहन अनुसंधान प्रकोष्ठ (Transport Research Wing) की दुर्घटनाओं का विश्लेषण और रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन उनके डेटा संग्रह के तरीके ड्राइवर की थकान और झपकी को दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में शामिल करने में विफल हैं। यह चूक न केवल लापरवाही है बल्कि गैर-जिम्मेदाराना है, क्योंकि थकान से जुड़ी दुर्घटनाएं सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त हैं। मंत्रालय ने 2015, 2016 और 2017 में थकान और झपकी से संबंधित दुर्घटनाओं का डेटा इकट्ठा किया था। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से, इस महत्वपूर्ण अभ्यास को बंद कर दिया गया। क्यों? मजबूत आंकड़ों की अनुपस्थिति सरकार और जनता, दोनों को एक महत्वपूर्ण चेतावनी प्रणाली से वंचित कर देती है, जो सड़क हादसों को रोकने में मदद कर सकती थी।

Mukesh Pandit

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के हापुड़ शहर (अब जिला) में जन्म। एसएसवी पीजी कालेज से हिंदी एवं समाजविज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा। वर्ष 1988 से विभिन्न समाचार पत्रों दैनिक विश्वमानव, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, दैनिक जागरण में रिपोर्टिंग और डेस्क कार्य का 35 वर्ष का अनुभव। सेवानिवृत्त के बाद वर्तमान में फेडरल भारत डिजिटल मीडिया में संपादक के तौर पर द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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Mukesh Pandit

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के हापुड़ शहर (अब जिला) में जन्म। एसएसवी पीजी कालेज से हिंदी एवं समाजविज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा। वर्ष 1988 से विभिन्न समाचार पत्रों दैनिक विश्वमानव, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, दैनिक जागरण में रिपोर्टिंग और डेस्क कार्य का 35 वर्ष का अनुभव। सेवानिवृत्त के बाद वर्तमान में फेडरल भारत डिजिटल मीडिया में संपादक के तौर पर द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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