ओबीसी के फेर में फंसी राजनैतिक पार्टियां, जाने किस करवट बैठेगा यह वोट बैंक
उत्तर प्रदेश चुनाव 2022
ब्यूरो रिपोर्ट :- नोएडा (उप्र),29 सितंबर
उत्तर प्रदेश में 2022 में सरकार बनाने के लिये बीजेपी और अन्य पार्टियां नए नए हथकंडे अपना रही है, उन्ही हथकंडों में से एक है ओबीसी प्लान, आइये आपको समझाते हैं आख़िर क्या है यह प्लान
क्या कहते हैं आंकड़े
बता दें उत्तर प्रदेश में सरकारी तौर पर जातीय आधार पर कोई भी आंकड़ा मौजूद नही है, लेकिन अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी का है, जातीय गणित के अनुसार लगभग 52 % पिछड़ा वोट बैंक है, इसमें चौकाने वाली बात यह है कि पिछड़ा वोट बैंक का 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव वर्ग का है, जो कभी भी किसी भी पार्टी के साथ स्थायी रूप से खड़ा नही रहता है, कड़वी सच्चाई ये भी है कि यह वोटर कभी भी सामूहिक रूप से किसी भी पार्टी को पूर्ण रूप से समर्थन भी नही देता है ।
सभी पार्टियों के लिए सर दर्द की बात यह है कि ओबीसी समाज अपना वोट जाति के आधार पर करता आया है, यही वजह है कि सभी पार्टियों की निगाहें इस वोट बैंक पर गढ़ी रहती है, सपा और बीजेपी ने इस इस संकट से उबरने के लिए अति पिछड़ी जातियों में शामिल अलग-अलग जातियों को साधने के लिए उसी समाज के नेता को मोर्चे पर भी लगा रखा है,
प्रदेश का जातीय गणित
उत्तर प्रदेश में ओबीसी की 79 जातियां हैं जिसमें सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर कुर्मी समुदाय की है सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक ओबीसी जातियों में यादवों की आबादी कुल 20 फ़ीसदी है जबकि राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 11 फीसदी है यह वह आंकड़ा है जिसको सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है ।
वही यूपी में गैर यादव ओबीसी जातियां सबसे ज्यादा अहम हैं जिनमें कुर्मी-पटेल 7 फ़ीसदी, कुशवाहा-मौर्य-शाक्य-सैनी 6 फ़ीसदी,लोधी चार फीसदी, गडरिया-पाल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फ़ीसदी, तेली-साहू-जायसवाल 4 फीसदी, जाट 3 फ़ीसदी, कुमार-प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई-चौरसिया 3 फीसदी, राजभर 2 फीसदी, और गुर्जर 2 फीसदी हैं !
यूपी में बीजेपी और सपा ने ओबीसी समुदाय के कुर्मी समाज के प्रदेश अध्यक्ष हैं तो बसपा ने राजभर और कांग्रेस ने कानू जाति के व्यक्ति को कमान दे रखी है !
वहीं यूपी में 22 फीसद ही दलित वोट काफी अहम माने जाते हैं लेकिन यह वोट बैंक जाटव और गैर जाटव के बीच बटा हुआ है वजह यही है कि इनमें तीन चौथाई और कुल आबादी का 12 फ़ीसदी जाटव है जो पूरी तरह मायावती के साथ लामबंद है जबकि बाकी 8 फ़ीसदी गैर जाटव दलित 50-60 जातियों और उप जातियों में बटा हुआ है गैर जाट दलित में बाल्मीकि, खटीक, धोबी कोरी सहित तमाम जातियों के राजनीतिक दल अपने अपने पाले में लामबंद करने में जुटे हुए हैं !
कुर्मी समुदाय
जातिगत आधार पर देखें तो यादवों के बाद सबसे बड़ी संख्या कुर्मी समुदाय की है, प्रदेश के 16 जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक 6 से 12 फ़ीसदी तक है, इनमें मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, और बस्ती जिले प्रमुख हैं, ।
मौर्य-कुशवाहा
ओबीसी की मौर्या-शाक्य-सैनी और कुशवाहा जाती की आबादी तेरह जिलों का वोट बैंक 6 से 10 फीसदी तक है, इन जिलों में फिरोजाबाद, एटा, प्रयागराज, मैनपुरी, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरेया, बदायूं, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर शामिल हैं, इसके अलावा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद में सैनी समाज निर्णायक भूमिका में रहता है ।
लोधी समाज
लोधी समाज के वोट बैंक का भी बड़ा दबदबा है, यह बीजेपी का वोट बैंक माना जाता रहा है, यह वोट बैंक कई जिलों में तख्ता पलट कर देता है, जिनमें रामपुर, ज्योतिबाफुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, शाहजहांपुर, हरदोई, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, महोबा ऐसे जिले हैं ।
मल्लाह-निषाद :-
ओबीसी में मल्लाह समुदाय भी करीब 6 फीसदी है, यह जातियाँ उत्तर प्रदेश में अलग अलग जगहों पर निषाद, बिंद, कश्यप, और केवल जैसी उपजातियों के नाम से जानी जाती है, फतेहपुर, चंदौली, मिर्जापुर, ग़ाज़ीपुर, बलिया, वाराणसी, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, जौनपुर, औरैया जिले में इनकी अधिकता होने की वजह से भी पार्टियों की नजर इस वोट बैंक पर रहती है ।