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अग्निपथ व अग्निवीर योजना का विरोधः डीएम को ज्ञापन देने पर अड़े प्रदर्शनकारियों से सुरक्षा बलों की झड़प

बाद में डीएम कार्यालय से बाहर आकर प्रदर्शनकारियों के बीच बैठे और लिया ज्ञापन

नोएडा। संयुक्त मोर्चा एवं भारतीय किसान यूनियन संगठन के आह्वान पर केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के विरोध में यहां प्रदर्शन कर धरना दे रहे लोगों और सुरक्षा बलों में झड़प हो गई। बाद में जिलाधिकारी के प्रदर्शन कारियों के बीच आकर ज्ञापन लेने से मामला शांत हुआ।

 

हुआ यूं था कि प्रदर्शन और धरने के दौरान प्रदर्शनकारी जिलाधिकारी को ही ज्ञापन देना चाहते थे। वे चाहते थे कि जिलाधिकारी अपने कार्यालय से बाहर आकर उनके बीच से ज्ञापन लें। पहले जिलाधिकारी बाहर नहीं आ रहे थे। इस पर आंदोलनकारी उनके कार्यालय में जाकर ज्ञापन देने की जिद्द पर अड़ गए। इस पर सुरक्षा कर्मियों और उनमें बहस के साथ झड़प हो गई। इसकी जानकारी जब जिलाधिकारी को हुई तो वे बाहर प्रदर्शनकारियों के बीच आकर बैठ गए और उनसे ज्ञापन लिया।

क्यों कर रहे दे रहे थे प्रदर्शन

आंदोलकारी केंद्र सरकार की अग्निपथ और अग्निवीर योजना को वापस लेने की मांग के समर्थन में प्रदर्शन कर धरना दिया था। उनका कहना था कि अग्निपथ और अग्रिवीर योजना देश, जवान और किसान के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने है। इसे रद किया जाना चाहिए।

कहां दिया था धरना और प्रदर्शन

वे अपनी मांग लेकर वे गौतमबुद्ध नगर के सूरजपुर स्थित जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचे। और वहां प्रदर्शन करने के बाद धरने पर बैठ गए। इस किसान और नौजवान शामिल थे।

कौन लोग थे आंदोलन में शामिल

आंदोलन में भारतीय किसान यूनियन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पवन खटाना, गौतमबुद्ध नगर भाकियू के  जिलाध्यक्ष अनित कसाना, मटरू नागर, परविंदर अवाना, चंद्रपाल बाबूजी, फिरेराम बेली भाटी, जयवीर नागर, अंकुर शर्मा, रियासत अली, ललित चौहान, सुरेंद्र नागर, महेश खटाना, योगेश भाटी, बेगराज प्रधान, ओम सिंह अवाना, सुमित तंवर, संदीप अवाना, अजब प्रधान, सुंदर नेताजी, चाहत राम मास्टर, गजेंद्र चौधरी, प्रमोद आदि सहित सैकड़ों लोग शामिल थे। युवा साथी मौजूद रहे

किसको संबोधित है ज्ञापन, क्या कहा गया है

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से दिया ज्ञापन राष्ट्रपति को संबोधित है। ज्ञापन में कहा गया है कि आप देश के मुखिया होने के साथ ही भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर भी हैं। देश में जवान और किसान के अभिन्न रिश्ते से आप परिचित हैं। इसलिए हम भारत के जवान और किसान इस उम्मीद के साथ आपसे यह अपील कर रहे हैं कि आप “अग्निपथ” नामक योजना से देश, जवान और किसान के भविष्य के साथ होने वाले खिलवाड़ को रोकेंगे।

ज्ञापन में कहा गया ह कि केंद्र सरकार सेना में भर्ती की पुरानी पद्धति को खत्म कर “अग्निपथ” नामक योजना लाई है। इस नई योजना के तहत सेना की भर्ती में कई बड़े और दूरगामी बदलाव एक साथ किए गए हैं। बदलाव के अनुसार सेना में जवानों की पक्की नौकरी में सीधी भर्ती बंद कर दी गई है। थल सेना और वायु सेना में जो पक्की भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी (जिसमें फाइनल टेस्ट या नियुक्ति पत्र जारी करने बाकी थे) उसे भी रद कर दिया गया है। अब से सेना में भर्ती सिर्फ चार साल के कॉन्ट्रैक्ट की नौकरी के जरिए होगी। अग्निवीर नामक इन अस्थाई कर्मचारियों को न तो कोई रैंक दिया जाएगा न ही 4 साल के बाद कोई ग्रेच्युटी या पेंशन। चार साल की सेवा समाप्त होने के बाद इनमें से एक चौथाई या उससे भी कम को ही सेना में पक्की नौकरी दी जाएगी।

ज्ञापन के अनुसार वर्ष 2020 में हुई पिछली भर्ती में 87 हजार नियुक्तियों की जगह इस योजना के पहले साल में सिर्फ 46 हजार और पहले चार साल में कुल दो लाख अग्निवीरों को नियुक्त किया जाएगा। अब तक चले आ रहे रेजिमेंट आधारित क्षेत्र समुदाय कोटा की जगह सभी भर्तियां “ऑल इंडिया ऑल क्लास” के आधार पर होगी।

ज्ञापन के अनुसार यह हैरानी की बात है कि इतने बड़े और दूरगामी बदलावों की घोषणा करने से पहले सरकार ने किसी न्यूनतम प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया। नई भर्ती की प्रक्रिया का कोई “पायलट” प्रयोग कहीं नहीं किया गया। संसद के दोनो सदनों या संसद की रक्षा मामलों की स्थाई समिति के सामने इन प्रस्तावों पर कोई चर्चा नहीं हुई। इस योजना से प्रभावित होने वाले स्टेकहोल्डर (भर्ती के आकांक्षी युवा, सेवारत जवान और अफसर, सघन भर्ती के इलाकों के जनप्रतिनिधि और साधारण जनता) के साथ कभी कहीं कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया। उलटे, पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने वर्तमान रेजिमेंट भर्ती व्यवस्था को बनाए रखने और रिटायरमेंट की आयु को बढ़ाने जैसे फैसले लिए हैं।

ज्ञापन में कहा गया है कि  पिछले कुछ दिनों से इस योजना को लेकर हुई राष्ट्रव्यापी चर्चा से यह स्पष्ट हो गया है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा को बहुत बड़ा धक्का है। ज्ञापन के अनुसार  अगर यह योजना अपने वर्तमान स्वरूप में लागू होती है तो आने वाले 15 वर्षों में हमारे सैन्य बलों की संख्या आधी या उससे भी कम रह जाएगी। यह सोचना भी हास्यास्पद है कि चार साल की अवधि में अग्निवीर वह तकनीकी दक्षता और संस्कार हासिल कर पाएंगे जिसके आधार पर वह देश की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा सकेंगे।

ज्ञापन में कहा गया है कि रेजिमेंट की सामाजिक बुनावट को रातों-रात बदलने से सेना के मनोबल पर बुरा असर पड़ेगा। ज्ञापन में अफसोस जताया गया है कि सरकार ऐसे बदलाव उस समय ला रही है जबकि पिछले कुछ वर्षों में पड़ोसी देशों की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा गहरा हुआ है। इस परिस्थिति में सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के बजट को वर्ष 2017-18 में केंद्र सरकार के खर्च के 17.8% से घटाकर 2021-22 में 13.2% करना चिंताजनक है। यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है की जो सरकार दिखावे के प्रोजेक्ट में तमाम फिजूलखर्ची कर सकती है वह सैनिकों के वेतन और पेंशन में कंजूसी कर रही है।

ज्ञापन में कहा गया है कि सेना के पूर्व जनरल, अधिकारियों, परमवीर चक्र जैसे शौर्य पदक प्राप्त सैनिकों और सैन्य विशेषज्ञों ने इस योजना के गंभीर दुष्परिणाम के बारे में आगाह किया है। लेकिन सरकार की ओर से इनका कोई जवाब नहीं आया है।

ज्ञापन में कहा गया है कि सेना में भर्ती के आकांक्षी युवाओं और देश के किसान परिवारों के लिए भी यह बहुत बड़ा धोखा है। ज्ञापन के अनुसार जिन युवकों की भर्ती प्रक्रिया 2020-21 में शुरू हो चुकी थी उसको बीच में रोकना उनके सपनों के साथ खिलवाड़ है। सेना में भर्ती की संख्या को घटाना, सेवाकाल को घटाकर चार साल करना और पेंशन समाप्त करना उन सब युवाओं और परिवारों के साथ अन्याय है जिन्होंने फौज को देशसेवा के साथ कैरियर के रूप में देखा है। किसान परिवारों के लिए फौज की नौकरी मान सम्मान के साथ आर्थिक खुशहाली से भी जुड़ी रही है।  चार साल की सेवा के बाद तीन-चौथाई अग्निवीरों को सड़क पर खड़ा कर देना युवाओं के साथ भारी अन्याय है। हकीकत यह है कि सरकार अब तक 15 से 18 साल सेवा करने वाले अधिकांश पूर्व सैनिकों के लिए भी पुनर्वास की संतोषजनक व्यवस्था नहीं कर पाई है। वह अग्निवीरो के रोजगार की क्या व्यवस्था करेगी? ज्ञापन में कहा गया है कि रेजीमेंट के सामाजिक चरित्र की जगह “ऑल क्लास ऑल इंडिया” भर्ती करने से उन क्षेत्रों और समुदायों को भारी झटका लगेगा जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी सेना के जरिए देश की सेवा की है। इनमे पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान जैसे इलाके शामिल है।

ज्ञापन के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि अग्निपथ इस सरकार की एक व्यापक मुहिम का हिस्सा है जिसके तहत खेती पर कंपनी राज स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। सभी स्थाई सरकारी नौकरियों को ठेके पर दिया जा रहा है या कॉन्ट्रैक्ट की नौकरी में बदला जा रहा है। देश की संपत्तियां प्राइवेट कंपनियों को बेची जा रही है और पूरे देश का नीति निर्धारण चंद कॉरपोरेट घरानों का हित साधने के लिए किया जा रहा है। ऐसी तमाम नीतियां जनता और जनप्रतिनिधियों से छिपाकर बनाई जा रही है और उनका विरोध करने वालों का बर्बर तरीके से दमन किया जा रहा है।

क्या मांग और अपेक्षा की गई है

ज्ञापन में कहा गया है कि जैसा कि आप जानते हैं, उपरोक्त कारणों के चलते अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद से युवाओं का आक्रोश सड़कों पर उबल पड़ा है। कई युवकों ने सदमे में आकर आत्महत्या कर ली है। पूरे देश भर में सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं। यह आक्रोश दुर्भाग्यवश कई जगह हिंसक स्वरूप भी ले रहा है। हमें बहुत अफसोस से कहना पड़ रहा है कि सरकार ने युवाओं के इस जख्मों पर मलहम लगाने की बजाय नमक छिड़कने का काम किया है और हास्यास्पद घोषणाएं की हैं। तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन के अधिकार के विरुद्ध युवाओं को धमकाने के निंदनीय हरकत की है। तमाम विरोध के बावजूद केंद्र सरकार इस योजना को लागू करने पर आमादा है। 24 जून से इस योजना के तहत रजिस्ट्रेशन की शुरुआत करने की घोषणा की गई है।

ज्ञापन में राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि  अग्निपथ योजना को तत्काल और पूरी तरह रद किया जाए। इस योजना के तहत भर्ती का नोटिफिकेशन वापस लिया जाए। सेना में पिछली बकाया एक लाख 25 हजार रिक्त और इस वर्ष रिक्त होने वाले लगभग 60 हजार  पदों पर पहले की तरह नियमित भर्ती तत्काल शुरू की जाए। जहां भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी उसे पूरा किया जाए और पिछले दो साल भर्ती न होने के एवज में युवाओं को सामान्य भर्ती की आयु सीमा में 2 वर्ष की छूट दी जाए। किसी भर्ती के लिए आवेदकों से ऐसा हलफनामा लेने की शर्त न रखी जाए जो उन्हें लोकतांत्रिक प्रदर्शन के अधिकार से वंचित करती हो। अग्निपथ विरोधी प्रदर्शनों में शामिल युवाओं के खिलाफ दर्ज सभी झूठे मुकदमे वापस लिए जाएं, गिरफ्तार युवाओं को रिहा किया जाय और आंदोलनकारियों को नौकरी से बाधित करने जैसी शर्तें हटाई जाए।

 

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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