बेहाल मरीजः जिला अस्पताल खुद ही बीमार, इलाज की सख्त जरूरत
डाक्टर पहले ही कम थे, पांच और स्थानांतरित कर दिए गए, नई तैनाती नहीं हुई
नोएडा। यहां के जिला अस्पताल में पहले से ही डाक्टर कम थे मरीजों के इलाज का काम किसी तरह चल रहा था। अब इस अस्पताल के और पांच डाक्टरों का स्थानांतरण (ट्रांसफर) हो गया है। स्थानांतरित डाक्टरों के स्थान किसी अन्य डाक्टरों की नियुक्ति नहीं हुई है। अस्पताल में डाक्टरों की कमी के कारण यहां की इलाज व्यवस्था चरमरा गई है।
मरीज और तीमारदार परेशान
डाक्टरों की कमी के कारण यह जिला अस्पताल कई समस्याओं से जूझ रहा है। मरीज और तीमारदार कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। अपनी बीमारी का इलाज कराने यहां औसतन करीब 2200 मरीज आते हैं। यहां आने पर पता चलता है कि उन्हें जो बीमारी है उसके तो डाक्टर ही नहीं हैं। यहां तक सामान्य बुखार और अन्य रोगों के मरीजों को भी यहां भारी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। डाक्टरों की कमी की वजह से उन्हें बिना इलाज कराए ही वापस हो जाना पड़ता है। साथ में जिस तीमारदार के मरीज आए होते हैं उन्हें भी परेशानी होती है।
गरीब तबके लोग आते हैं
खास बात यह है कि जिला अस्पताल में इलाज कराने आने वाले मरीज मध्यम और निम्न श्रेणी के होते हैं। यह वह तबका है जो निजी अस्पतालों के भारी भरकम खर्च को नहीं झेल सकते। उनकी सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए मजबूरी है। डाक्टर के अभाव में बिना इलाज कराए यहां से वापस होना भी उनकी मजबूरी बन जाती है।
क्या कहते हैं कार्यवाहक सीएमएस
यह बिडंबना ही है ही गौतमबुद्ध नगर जैसे जिला अस्पताल के पास स्थायी मुख्य चिकित्सक अधीक्षक (सीएमएस) तक नहीं है। स्वास्थ्य विभाग ने इस पद पर स्थायी नियुक्ति के बारे में फिलहाल कुछ सोचा ही नहीं है। खुद कार्यवाहक सीएमएस डॉ राजेन्द्र कुमार का कहना है की डाक्टरों की कमी पहले से थी। अब पांच और डाक्टरों का यहां से तबदला कर दिया गया है। यहां से तबादला किए गए डाक्टरों के स्थान पर नई नियुक्ति नहीं की गई है। अस्पताल में किसी तरह काम चलाया जा रहा है।
एसी प्लांट खराब
हाल ही में इस अस्पताल का दौरा उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने की थी। इस दौरान उन्होंने अस्पताल में कई खामियां पाई थी। उन खामियों पर उन्होंने नाराजगी जताई थी और अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि वे इन खामियों को जल्दी ही दूर करें। उनके निर्देश पर अभी तक अमल नहीं हुआ है। इस भीषण और चिपचिपी गर्मी के बावजूद अस्पताल का वातानुकुलित प्लांट (एसी प्लांट) काफी दिनों से खराब पड़ा हुआ है। इसे ठीक कराने की जहमत उठाई ही नहीं गई है। इसी के साथ ही काफी स्थान पर पंखे नहीं लगे हैं। इससे मरीज और तीमारदारों की परेशानियों का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
भर्ती हो इलाज करा रहे मरीज
चूंकि यह जिला अस्पताल है तो यहां काफी मरीज भी इलाज के लिए भर्ती हैं। अस्पताल में डाक्टरों की कमी से उन्हें क्या इलाज मिल पाता होगा, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। डाक्टरों की कमी के कारण फिलहाल नए मरीजों भर्ती करना लगभग बंद कर दिया गया है। जो पहले से भर्ती हैं उनका ठीक तरह से इलाज हो जाए यही बहुत है। यहीं किसी तरह मरीज और तीमारदार काम चला रहे हैं।
अग्निशमन सुरक्षा उपकरण भी खराब
कहने को तो यह जिला अस्पताल है। लेकिन कितना असुरक्षित है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां अग्निशमन सुरक्षा (फायर सेफ्टी) उपकरण काफी दिनों से खराब पड़ा हुआ है। बजट नहीं होने के कारण फायर सेफ्टी उपकरणों की मरम्मत (रिपेयरिंग) नहीं कराई जा सकी है। नया खरीदने की बात तो दूर की कौड़ी है। अगर अस्पताल में दुर्भाग्य से आग लग जाए तो मरीज, डाक्टर और स्टाफ भगवान भरोसे ही हैं। उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था ही नहीं है। यहां कभी भी भारी दुर्घटना हो सकती है।