उत्तर प्रदेशलखनऊ

प्रदेश के विकास में योगदान दे रहा रिमोट सेन्सिंग एप्लीकेशन सेंटर

आखिर कैसे योगदान दे रहा, क्या काम करता है यह सेंटर

 लखनऊ। रिमोट सेन्सिंग एप्लीकेशन्स सेंटर, लखनऊ विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। रिमोट सेन्सिंग एप्लीकेशन्स सेंटर एक स्वायत्तशासी संस्था है। शुरू से ही वायुवीय तथा उपग्रहीय संवेदन तकनीक एवं पारम्परिक तकनीकों के समन्वय से इस केन्द्र द्वारा उत्तर प्रदेश के विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों सम्बन्धित अध्ययन किए जाते रहे हैं।

प्रदेश के विकास में योगदान देने के लिए इस केन्द्र ने भू-सम्पदा, जल संसाधन, वन एवं कृषि सम्पदा, मृदा भूमि उपयोगिता/भूमि आच्छादन तथा नगरीय संरचना सम्बन्धी अनेक आँकड़े सृजित किए हैं। केन्द्र की कार्यप्रणाली प्रमुखतः दो प्रारूपों में होती है। प्रदेश के विभिन्न उपयोगकर्ता विभागों के अनुरोध पर होने वाले कार्यों के रूप में तथा केन्द्र द्वारा संचालित शोध परियोजनाओं के रूप में। प्रदेश सरकार के उपयोगकर्ता विभागों में सुदूर संवेदन की क्षमता एवं उपयोगिता के प्रति जागरूकता बढ़ी है तथा विभिन्न विभागों द्वारा पोषित परियोजना कार्यों में दिनोदिन बढ़ोत्तरी हो रही है।

इस संस्थान के प्रमुख कार्य क्षेत्र में जल संसाधन सम्बन्धी अध्ययन किया जाता है जिसमें प्रदेश के बाढ़ एवं सूखा प्रभावित क्षेत्रों का सेटेलाइट चित्रों से मानटरिंग, प्रदेश के सभी जिलों में तालाबों, पोखरों, झीलों जलाशयों तथा नहरों के समीप जलभराव के क्षेत्रों का सेटेलाइट चित्रों से मानचित्रण, प्रदेश में बाढ़ एवं सूखा प्रबन्धन हेतु राज्य आपदा प्रबन्धन कार्य योजना का सृजन, बुंदेलखण्ड तथा प्रदेश के अन्य दक्षिण पठारी क्षेत्र में जहॉ पानी की कमी है, नए ट्यूबवेल तथा हैण्डपम्प के लिए उपयुक्त स्थलों का चयन, जल गुणवत्ता आंकलन, प्रदेश की विलुप्त होने वाली नदियों के पुनरूद्धार संबंधी अध्ययन, प्रदेश में जलीय क्षेत्रों का मानचित्रण, प्रदेश में समेकित जलसंग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम, हिमालय के कतिपय क्षेत्रों में ग्लेशियर तथा हिमाच्छादित क्षेत्रों का अध्ययन आदि कार्य कराए जाते हैं।

संस्थान द्वारा संसाधन सम्बन्धी अध्ययन के अन्तर्गत विकेन्द्रीकृत नियोजन हेतु अन्तरिक्ष आधारित सूचना सहायता प्रणाली (एसआईएसडीपी) अपडेट परियोजना का प्रदेश में सम्पादन, हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन संबंधी पाइलेट अध्ययन, भूस्खलन जोखिम प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय रणनीति का सृजन, गंगा नदी बहाव में आये परिवर्तनों का अध्ययन, झांसी तथा ललितपुर जनपदों में खनिज सम्पदा का अध्ययन, ललितपुर एवं महोबा जनपदों में भूपर्यावरणीय अध्ययन, राप्ती नदी के जलग्रहण क्षेत्र का भूआकृतिक अध्ययन, प्रदेश में नये बैराज, पुल, सड़क एवं रेलमार्गों के लिए सुरक्षित स्थल चयन, सम्पूर्ण प्रदेश भूआकृतिकीय एवं स्थलानुरेख मानचित्रण, सम्पूर्ण प्रदेश के लिए प्राकृतिक संसाधन सूचना प्रणाली का सृजन एवं प्रदेश में भूकम्प आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए स्टेट डिजास्टर मैनेजमेन्ट प्लान  सृजन का अध्ययन किया जाता है।

उसी तरह वन संसाधन सम्बन्धी अध्ययन के अन्तर्गत वन विभाग उ0प्र0 के वन प्रभागों की कार्य योजना का सृजन, वन बन्दोबस्त परियोजना में वन सीमाओं का डिजिटलीकरण एवं वनाच्छादन मानचित्रण, प्रदेश के विभिन्न भागों में जंगलों में आयी बढ़ोत्तरी या कमी का आंकलन तथा अलग-अलग प्रकार के जंगलों और पेड़ों की पहचान का कार्य, विभिन्न नेशनल पार्क में जंगलों, चारागाहों तथा पानी के श्रोतों का अध्ययन एवं सामाजिक-वानिकी के लिए वृक्षारोपण हेतु उचित स्थलों के चयन का अध्ययन किया जाता है।

यह संस्थान प्रदेश के कृषि संसाधन संबंधी अध्ययन कार्य के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश के लोअर, गंगा, हैदरगढ़ तथा बुन्दलेखण्ड नहरों के कमाण्ड क्षेत्र में वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग परियोजना, गेहूँ, धान, गन्ना, सरसों, मक्का तथा बाजरा की फसल के क्षेत्रफल एवं उपज संबंधी पुर्वानुमान, सूखा प्रभावित क्षेत्रों का सेटेलाइट चित्रों से आंकलन, रेशम उद्योग के विकास के लिए सेटेलाइट चित्रों के द्वारा सर्वे तथा प्रदेश में बागानों के विकास का अध्ययन किया जाता है।

मृदा संसाधन संबंधी अध्ययन के अन्तर्गत प्रदेश में मरूस्थलीकरण तथा भूमि अपक्षय का अनुश्रवण, विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित ऊसर भूमि सुधार परियोजना के अन्तर्गत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों की ऊसर तथा परती जमीन का सेटेलाइट चित्रों से खसरा स्तर तक सर्वे तथा ऊसर भूमि सुधार की मानिटरिंग का कार्य किया जाता है।

प्रदेश में भूमि उपयोग एवं नगरीय सर्वेक्षण संबंधी अध्ययन के लिए प्रदेश के सभी जनपदों के भूमि उपयोग तथा भूअच्छादन का सेटेलाइट चित्रों से मानचित्रण, प्रदेश के मुख्य शहरों के फैलाव का सेटेलाइट चित्रों से मानचित्रण, प्रदेश के विभिन्न विकास प्राधिकरणों के अन्तर्गत अनाधिकृत कालोनियों का जी0आई0एस0 आधारित मानचित्रीकरण एवं इलेक्ट्रानिक बस रूट मानचित्रण का अध्ययन किया जाता है।

रिमोट सेन्सिंग तकनीक के माध्यम से प्रदेश के चहुमुखी उत्थान के लिए भू-सम्पदा, जल सम्पदा, जल संसाधन, वन एवं कृषि सम्पदा, मृदा, भूमि उपयोगिता, भू-आच्छादन, नगरीय संरचना आदि क्षेत्रों में अनेक बहुमूल्य आंकडे एकत्रित कर विकास कार्यों में यह संस्थान सहयोगी रहा है।

 

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

Tags

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

Related Articles

Back to top button
Close