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आरटीआई से खुलासाः फॉरेंसिक लैब की धीमी चाल से न्याय मिलने में होती है देरी

हर साल आधे से ज़्यादा मुकदमों में फाइनल रिपोर्ट नहीं मिल पातीः रंजन तोमर

नोएडा। देश में न्याय की उम्मीद लगाए बैठे करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर पानी फिरने का काम देश के आज़ाद होने से आजतक जारी है। निचली अदालतों में 4 करोड़ 19 लाख 79 हजार 353 मामले लंबित हैं। उच्च न्यायालयों में 59 लाख 45 हजार 709 मामले तो उच्चतम न्यायालय में 72 हजार 62 मामले लंबित हैं। यह जानकारी इस वर्ष की 15 जुलाई तक की है जिसे केंद्रीय कानून मंत्री ने संसद के सामने रखा है। ऐसे में इन मामलों के लंबित होने से पता लगाना और उनका निराकरण बेहद ज़रूरी हो गया है।

नोएडा के समाजसेवी रंजन तोमर ने एक आरटीआई फोरेंसिस विज्ञानं सेवा  निदेशालय में लगाई थी। उसमें यह पूछा गया था कि 2016 से अब तक प्रत्येक वर्ष कितने केसों में फॉरेंसिक जांच के लिए उनके पास केस आते हैं और कितने केसों में वह फाइनल रिपोर्ट लगा पाते हैं और कितने केस लंबित होते हैं। इसके जवाब में निदेशायल ने जानकारी दी थी कि उसके अधीन 6 लैब आते हैं। उनके ब्योरे के अनुसार 2016 -17 में 7290 केस इन लैबों के पास आए। 4403 लंबित केस रहे।  अगले वर्ष 2017 -18 में से 7468 केस आए 4476 लंबित केस रहे। 2018 -19 में 7420 केस आए और 5548 लंबित केसों की संख्या रही। 2019 – 20 में 8356 केस आए और 4716 लंबित केस रहे। 2020 -21 में 6820 केस आए और 4105 लंबित केस संख्या रही। वर्ष 2021 -22 में  9807 केस आए और 4127 लंबित केसों की संख्या रही। 2022 में अब तक 2576 केस आए और लंबित केसों की संख्या 4390 रही।

गौरतलब है की न्यायिक विज्ञान विभिन्न प्रकार के विज्ञान का उपयोग कर न्यायिक प्रक्रिया की सहायता करने वाले प्रश्नों का उत्तर देने वाला विज्ञान है। ये न्यायिक प्रश्न किसी अपराध से संबंधित हो सकते हैं या किसी दीवानी  मामले से जुड़े हो सकते हैं।

न्यायालयीय विज्ञान मुख्यतः अपराध की जांच के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुप्रयोग से संबंधित है। फॉरेंसिक वैज्ञानिक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से अपराध स्थल से एकत्र किए गए सुरागों को अदालत में प्रस्तुत करने के वास्ते स्वीकार्य सबूत के तौर पर इन्हें परिवर्तित करते हैं। यह प्रक्रिया अदालतों या कानूनी कार्यवाहियों में विज्ञान का प्रयोग या अनुप्रयोग है। फ़ॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल से एकत्र किए जाने वाले प्रभावित व्यक्ति के शारीरिक सबूतों का, विश्लेषण करते हैं तथा संदिग्ध व्यक्ति से संबंधित सबूतों से उसकी तुलना करते हैं और न्यायालय में विशेषज्ञ प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इन सबूतों में रक्त के चिह्न, लार, शरीर का अन्य कोई तरल पदार्थ, बाल, उंगलियों के निशान, जूते तथा टायरों के निशान, विस्फोटक, जहर, रक्त और पेशाब के ऊतक आदि सम्मिलित हो सकते हैं। उनकी विशेषज्ञता इन सबूतों के प्रयोग से तथ्य निर्धारण करने में ही निहित होती है। उन्हें अपनी जांच की रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती है तथा सबूत देने के लिए अदालत में पेश होना पड़ता है। वे अदालत में स्वीकार्य वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध कराने के लिए पुलिस के साथ निकटता से काम करते हैं।

यह जानकारी सिर्फ देश के 6 बड़े लैब से सम्बंधित है, जबकि प्रत्येक जिला न्यायालयों में लाखों की संख्या में केस फॉरेंसिक जांच के देरी होने के कारण लंबित पड़े रहते हैं। सालों में फॉरेंसिक सैंपल भी ख़राब होने की संभावना रहती है।

रंजन तोमर का कहना है की करोड़ों की संख्या में केसों के लोड को कम करने हेतु सरकार को या तो हज़ारों की संख्या में लैब स्थापित करने होंगे या निजी लैबों को अनुमति देनी होगी। ऐसे निजी लैब को मान्यता प्राप्त हों और जिनमें नियमों का पालन कड़ाई से हो। तभी केसों का यह बोझ कम हो सकेगा अन्यथा यह ऐसे ही बढ़ता रहेगा।

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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