नोएडा : ‘संत, महात्माओं ने अनेक धर्मग्रंथों एवं अपनी रब्बी वाणियों के माध्यम से सदैव यही शिक्षा देने का प्रयत्न किया है कि संसार में व्याप्त यह दुनियावीं वस्तुएं केवल हमारे गुजरान के लिए है। इनसे हमें क्षणिक सुख की प्राप्ति हो सकती है, किंतु अंतर्मन की शांति एवं आनंद केवल परमात्मा का ज्ञान होने पर ही संभव है और यह हमें ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। इस ज्ञान द्वारा हम परमात्मा को जानकर भक्तिमार्ग पर चलते हुए एक प्रेममयी जीवन जी सकते है।’
हजारों लोगों ने लिया सत्संग का लाभ
यह उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सेक्टर-21ए में स्थित नोएडा स्टेडियम के पास रामलीला मैदान, में आयोजित सत्संग में उपस्थित भक्तों एवं श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस सत्संग कार्यक्रम में स्थानीय भक्तों एवं गणमान्य सज्जनों के अतिरिक्त दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, मेरठ, हापुड़, फरीदाबाद, दादरी आदि से हजारों की संख्या में श्रद्धालुगण उत्साहपूर्वक सम्मलित हुए और सभी ने सत्संग का भरपूर आनंद प्राप्त किया। सांसद महेश शर्मा इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए और उन्होंने दिव्य युगल का पावन आशीर्वाद प्राप्त किया
परमात्मा ने दी हैं सुख-सुविधाओं की वस्तुएं
सतगुरु माता जी ने फरमाया कि परमात्मा ने हमारी सभी सुख-सुविधाओं के लिए हर वस्तु का निर्माण किया है और उनका सही प्रकार से उपयोग करने हेतु विवेक और सामर्थ्य भी दिया है, किन्तु मनुष्य की इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होती। एक पूरी हुईं नहीं कि दूसरी शुरू हो जाती हैं और इस प्रकार से आवश्यकता से आरम्भ हुईं एक छोटी-सी इच्छा अंत में एक प्रबल लालच का रूप ले लेती हैं और एक अथाह बाल्टी (bottomless bucket) की भांति जीवनपर्यंत बनी रहती हैं, जिसका कोई अंत नहीं होता। इन सुख सुविधाओं की इच्छा रखने वाला मनुष्य फिर किसी प्रकार की हिंसक प्रवृति करने से भी नहीं चूकता क्योंकि यह इच्छाएं निरंतर अग्नि के समान बढ़ती ही रहती है। अतः हमें संतों जैसा जीवन ही जीना चाहिए।
स्वयं प्रेम बनकर औरों में प्रेम बांटें
संत प्रवृति के अंतर्गत माता शबरी और राजा जनक का जिक्र करते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि संत महात्मा परमात्मा से जुड़कर इसके निरंतर एहसास में रहते हुए हरि इच्छा अनुसार अपना जीवनयापन करते है। ऐसा जीवन जो स्वयं एवं दूसरों के लिए एक सकारात्मक और सुकून देने वाला होता है। वह अपनी अंतर्मन की इच्छाओं को सही दिशा देकर, उसे अच्छे कार्यों में लगाने का प्रयास करते हैं और स्वयं प्रेम बनकर औरों में प्रेम बांटने का कार्य करते हैं। संत किसी वेशभूषा का नाम नहीं यह तो एक सहज अवस्था है जो अमीरी या गरीबी पर निर्भर नहीं।कार्यक्रम के अंत में स्थानीय संयोजक श्री शिंगारा सिंह ने सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी के शुभ आगमन हेतु हृदय से आभार व्यक्त किया। इसके साथ ही स्थानीय प्रशासन के सकारात्मक सहयोग हेतु सभी का धन्यवाद भी दिया।