उत्तर प्रदेश से सुनील बंसल की होगी विदाई
भाजपा नेतृत्व व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा गंभीरता से विचार
प्रहलाद वर्मा, लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में बड़े बदलाव की तैयारी में है। उप्र भाजपा संगठन के प्रभारी सुनील बंसल को वह अन्य प्रांत में भेजेगी। सुनील बंसल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह क करीबी बताए जाते हैं।
प्रदेश भाजपा के सूत्र बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के मौजूदा महासचिव (संगठन) सुनील बंसल की जगह जल्द ही कोई नया चेहरा आने की संभावना है। सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सुनील बंसल को ओडिशा या दिल्ली में भाजपा संगठन में स्थानांतरित करना चाहता है और उत्तर प्रदेश में अपना विकल्प खोजने की प्रक्रिया में है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बंसल ने ही खुद को उत्तर प्रदेश से से अन्य स्थान पर शिफ्ट करने की मांग की है।
गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा के संगठन पदाधिकारियों को सुनील बंसल से कई शिकायतें हैं। यहां तक कि योगी-एक के कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ से सुनील बंसल की काफी तनातनी थी। यहां तक योगी-एक के कार्यकाल में योगी को कामकाज करने में काफी परेशानी महसूस हो रही थी। बंसल का मुख्यमंत्री के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप काफी बढ़ गया था। इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। इसकी शिकायत भी शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर हुई लेकिन बंसल के बहाने गृहमंत्री अमित शाह से कोई सीधे पंगा लेने को तैयार नहीं था। यही कारण था कि बंसल अपने स्थान पर जमे रहे।
योगी-दो के कार्यकाल में जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ एक सशक्त नेतृत्व के रूप में उभरे हैं वहीं बंसल इस कार्यकाल में पहले कार्यकाल की अपेक्षा काफी कमजोर पड़ गए हैं। भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव पूरी तरह योगी आदित्य नाथ के नेतृत्व में लड़ा। मुख्यमंत्री का चेहरा भी वही थे। हालांकि चुनाव से पहले जब अमित शाह ने योगी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित तो उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने विपरीत बयान दिया था कि चुनाव योगी के नेतृत्व में बल्कि कमल के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। केशव प्रसाद मौर्य को अपने इस बयान का खामियाजा भुगतना भी पड़ा। उन्हें भाजपा ने प्रयागराज जिले की सिराथू विधानसभा सीट से टिकट दिया। वहां केशव की ऐसी घेराबंदी हुई कि वे अपना दल (के) की प्रत्याशी पल्लवी पटेल से चुनाव हार गए। पल्लवी पटेल अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की सगी बड़ी बहन और अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की बड़ी बेटी हैं। अपना दल (के) का समाजवादी पार्टी (सपा) से गठबंधन था। सपा के समर्थन से उन्होंने केशव प्रसाद को अच्छे-खासे मतों के अंतर से पराजित कर दिया। चूंकि केशव प्रसाद मौर्य केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के करीबी बताए जाते हैं। शाह की उनकी कृपा हुई वे पहले से ही विधान परिषद के सदस्य थे। इसलिए योगी-दो के कार्यकाल में उन्हें विधानसभा का दोबारा चुनाव नहीं लड़ना पड़ा और उप मुख्यमंत्री का पद हासिल करने में सफल रहे। लेकिन योगी ने अपने दूसरे कार्यकाल में उनसे लोक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभाग छीनकर उनकी हैसियत बता दी। इससे पहले केशव प्रसाद मौर्य वर्ष 2014 में लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंधी चल रही थी। उस आँधी मौर्य चुनाव जीत गए। जब वे प्रदेश में उप मुख्यमंत्री बनाए तो उन्हें लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा। बाद में उसी सीट पर हुए उप चुनाव में भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य के बेटे को टिकट दिया और मौर्य को जिम्मेदारी सौंपी कि वे बेटे को चुनाव जीताएं। चुनाव में केशव मौर्य ने अपने बेटे को जीताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था लेकिन वे बेटे को चुनाव नहीं जीता सके। अब फिर विधानसभा चुनाव में मौर्य की खुद हार ने भाजपा कार्यकर्ताओं में सुगबुगाहाट शुरू हो गई है कि आखिर ऐसा केशव मौर्य में क्या है कि वे चुनाव हारने के बावजूद न सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार में शामिल कर लिए गए बल्कि उप मुख्यमंत्री जैसा पद भी प्राप्त कर लिया। यदि सामाजिक समीकरण के कारण वे उप मुख्यमंत्री बने हैं तो मौर्य जाति के ऐसे कई सारे नेता भाजपा संगठन में भरे पड़े हैं जो केशव प्रसाद मौर्य से काफी बेहतर हैं।
उधर सुनील बंसल के कामकाज को भाजपा के कार्यकर्ता, पदाधिकारी और यहां तक की वरिष्ठ नेता तक पसंद नहीं कर रहे थे। बंसल जब प्रदेश संगठन के पदाधिकारी बनकर आए तो उन्होंने प्रदेश भाजपा मुख्यालय में दूरदराज से आने वाले कार्यकर्ताओं के प्रवेश को अनावश्यक बताकर रोक लगा दी। भाजपा प्रदेश प्रवक्ताओं के बैठने का टर्न निर्धारित कर दिया। अपने टर्न के अलावा वे कार्यालय में नहीं बैठ सकते थे। अन्य पदाधिकारियों के भी बिना काम के बैठने पर रोक थी। इससे भाजपा प्रदेश मुख्यालय में प्रदेश स्तर का नेता भी प्रवेश करने से पहले कई बार सोचता था। कार्यकर्ताओं ने तो आना ही बंद कर दिया था। इसका असर चुनाव में पड़ा और भाजपा की सीटें पहले की अपेक्षा काफी घट गई। कार्यकर्ताओं की नाराजगी संगठन को चुकानी पड़ी। इसकी शिकायत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से की गई। इस शिकायत को संघ ने गंभीरता से लिया और बंसल के स्थानांतरित के विचार रूप में सामने आया।