रितु माहेश्वरी को सर्वोच्च न्यायालय ने दी बड़ी राहत
अगली सुनवाई तक उनकी गिरफ्तारी पर रोक जारी रहेगी
नई दिल्ली। नोएडा विकास प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) रितु माहेश्वरी को सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने बड़ी राहत दी है। उनकी गिरफ्तारी पर अगली सुनवाई तक रोक जारी रहेगी। उधर, रितु माहेश्वरी की दायर याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए नोएडा विकास विकास प्राधिकरण को कड़ी फटकार लगाई है। रितु माहेश्वरी की गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमीन लेने के बाद उचित मुआवजा नहीं देना सामान्य हो गया है। न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय तक मामला पहुंचने के बाद भी आप आदेशों का पालन नहीं करना चाहते हैं।
सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने कहा कि कई मामलों में प्रायः देखा गया है कि आपने (नोएडा विकास प्राधिकरण) ने जमीन तो ले ली लेकिन उसका मुआवजा नहीं दिया। न्यायालय ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि पांच रुपये या दस रुपये का मुआवजा देना क्या यह आदेश के अनुपालन करने का तरीका है। नोएडा विकास प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी रितु माहेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत जारी रहेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने रितु माहेश्वरी की याचिका पर नोटिस जारी किया। सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी।
गौरतलब है कि इससे पहले नोएडा विकास प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकार रितु माहेश्वरी की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने आज (शुक्रवार) तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी थी। ऐसे में रितु माहेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम राहत आज तक जारी थी। रितु माहेश्वरी के अधिवक्ता विकास सिंह ने बताया कि मामले में सुनवाई किए बिना ही सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) की ओर से जारी गैर-जमानती वारंट पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है।
मालूम हो कि नोएडा विकास प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी रितु माहेश्वरी के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने पांच मई को गैर जमानती वारंट जारी किया था। उसमें कहा गया था कि उन्हें पुलिस की कस्टडी में 13 मई को अदालत में पेश किया जाए। यही नहीं गौतमबुद्ध नगर जिले के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) को इस आदेश का पालन कराने की जिम्मेदारी सौपी गई थी। उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ नोएडा विकास प्राधिकरण की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में याचिक दाखिल की गई थी। उस याचिका पर बीते सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाया था और यहां तक कह दिया कि उत्तर प्रदेश के अधिकारी घमंड में चूर रहते हैं. इसलिए वे अदालतों में पेश ही नहीं होते हैं।