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देश की जिस जनता ने दिलाई सत्ता की कुर्सी, आज उसी जनता को ठेंगा दिखा रही है सरकार

मताधिकार पर जनता का नहीं ,बल्कि अब राजनेताओं का है अधिकार

लखनऊ : किसी ने भी ना सोचा था कि ऐसी गंभीर बीमारी से देश को जूझना पड़ेगा। लोग पैसे कमाने के बजाय केवल अपनी जान बचाने में लग जाएंगे। ऐसी महामारी आएगी जिसमें सड़कों पर इंसानों और गाड़ियों के शोर-शराबों के बजाय केवल सन्नाटा नजर आएगा। ऐसे स्थित आहट नहीं थी कि‌‌ किसी व्यक्ति के संक्रमित होने के बाद उसके अपने भी छोड़कर जाने पर मजबूर हो जाएंगे। किसी को अंदाजा तक नहीं था कि श्मशान घाट में 1 दिन में सैकड़ों चिताएं यूं धू-धू करके जलेंगी और अपनों को अकेले में सिसक- सिसक कर रोना पड़ेगा। यहां तक कि अंतिम दर्शन के लिए उनकी आंखें तरस जाएंगी।

 

बड़ी-बड़ी गाड़ियों और ,महलों में बैठकर सच्चाई को नहीं आंका जा सकता
हजारों की संख्या में लोगों की जानें जा रही हैं, कई हजार लोग अस्पतालों में जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं। कई ऐसे भी लोग हैं। जिनको अस्पतालों में ना बेड़ मिल रहे हैं और न ही ऑक्सीजन। उम्मीद नहीं फिर भी एक आस उन्हें अस्पतालों के बाहर भूखा, प्यासा और चिलचिलाती धूप में बैठने के लिए मजबूर कर रही है। कि कब उनके नसीब में किसी डॉक्टर की कृपा बरसे और उन्हें इलाज मिल सके। अपने पति, पत्नी, मां ,पिता और बहन के‌‌ ठीक होने के इंतजार के अलावा उन्हें और कुछ भी दिखाई न सुनाई नहीं देता। अपनों को खोने का दर्द क्या होता है, उन लोगों से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता जिन्होंने अपनों को खोया है। हकीकत को समझना आसान नहीं होता। बड़ी-बड़ी गाड़ियों और ,महलों में बैठकर सच्चाई को नहीं आंका जा सकता।फिर आप कितने भी बड़े मंत्री या राजनेता क्यों ना हो। देश की जनता अपने मताधिकार का प्रयोग कर देश के मुखिया का चुनाव करती है। वह इसलिए ताकि वह अपने देश और देश की प्रजा का भला कर सके। जनता उससे वह अधिकार दिलाती है जिनके बल पर वह देश का हित कर सके। लेकिन जब वही राजा अपनी प्रजा को तड़पता हुआ छोड़ दे, सत्ता की कुर्सी पर बैठकर नंगी जनता को ठेंगा दिखा दे तो उस 33 करोड़ जनता को समझ लेना चाहिए कि उसने अपने मताधिकार का गलत इस्तेमाल किया। क्योंकि आज वह राजा स्वार्थी हो गया है। आज वह देश में फैली महामारी से लोगों का दर्द और हकीकत समझने के बजाय बंद कमरे में बैठकर सच को झूठ में बदलने और चुनाव के लिए योजनाएं बनाने में लगे हैं।

 

जनता को हर बार करना पड़ता है समझौता
यह जरूरी नहीं कि देश का हर नागरिक किसी पार्टी या व्यक्ति के खिलाफ ही बोले। लेकिन जब देश का रखवाली करने और देश का हित करने वाला ही अगर सच को झूठ साबित करने में लग जाता है, आंखों पर पट्टी बांध लेता है। तब कोई न कोई नागरिक कुछ बोलने पर मजबूर हो जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसका इरादा किसी को ठेस पहुंचाना हो। देश में फैली कोरोना महामारी से लाखों परिवारों ने अपनों को खोया है, कई बच्चे अनाथ हुए हैं ,इसके पीछे की वजह कोरोना संक्रमण के अलावा एक चीज है और है ,वह है अस्पतालों में कोरोना मरीजों का ठीक से इलाज ना होना, सांस लेने में दिक्कत होने पर उन्हें समय पर ऑक्सीजन ना मिलना। हमारे देश में कई वर्षों से भ्रष्टाचार का सिलसिला चला आ रहा है। जनता का अधिकार होते हुए भी उन्हें चीजें उपलब्ध नहीं कराई गई। लेकिन जनता हमेशा चुप रही,अपने अधिकारों का हनन होते हुए अपनी आँखों से देखती रही। क्योंकि वह जानती थी की कुछ भी कर लो लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। जिसने भी आवाज उठाई, उसे धमकाया गया या फिर उसे मार दिया गया। इस महामारी में जब बात लोगों की जान पर आ रही है तब भी लोग आपदा में अवसर ढूंढ रहे हैं। तकलीफ की बात तो यह है की आज भी लोग चुप्पी साधे बैठे हुए हैं। हर बेबस जनता को ही समझौता करना पड़ता है।

सैकड़ो जलती चिताए और लोगों के आँखों से बहते आंसू बताए जा रहे हैं झूठे
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचारियों और अपराध,अपराधियों की‌ यहां ‌कोई कमी नहीं है ।आपदा में अवसर, भ्रष्ट लोगों को खूब मिल रहा है। चिकित्सा सुविधाओं की जमाखोरी और‌ ब्लैकमेलिंग जमकर हो रही है। सोशल मीडिया के अलावा अगर वास्तव में किसी मरीज के तीमारदार से पूछा जाए तो यही बात सामने निकल कर आती है कि उनके मरीज को ना तो चिकित्सीय सुविधा दी गई और ना ही ऑक्सीजन। कुछ लोग तो यह भी बता रहे हैं, ऑक्सीजन की कीमत लाखों में हो गई है। इंजेक्शन और दवाइयों के लिए आम जनता को डॉक्टरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ रहा है ,लेकिन उनका दिल नहीं पसीजता। जिन लोगों ने श्मशान घाटों में सैकड़ों चिताएं जलती देखीं, बादल को आसमानी के बजाय धुए से काले होते देखा उनकी रूह कांप गई। लेकिन यह सब सरकार को एक झूठ मात्र लगता है। एक तरफ धधकती चिताएं, लोगो के आँखों से निकलते आंसू को भी झूठ करार दिया जा रहा है। वह इसलिए ताकि सरकार की कार्य प्रक्रिया पर उंगली ना उठाई जाए। आम जनता कि नहीं तो कम से कम उन लोगों की बात का तो भरोसा करना चाहिए। जो सत्ता की कुर्सी दिलाने के लिए हमेशा साथ में रहे। सीएम योगी ने हाल ही में मीडिया को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बड़ी सहजता से कहा कि हम चिकित्सा सुविधाएं लगातार उपलब्ध करा रहे हैं। हमने ऑक्सीजन प्लांट की व्यवस्था कर ली है, और कई जगहों पर इसका कार्य भी चल रहा है। लेकिन शायद योगी जी को यह नहीं पता कि जिस जनता ने अपना कीमती वोट देकर उन्हें सत्ता की कुर्सी दिलाई थी।वह जनता बुद्धिहीन या न समझ नहीं है। ना ही अंधी और बहरी जिसे कुछ दिखाई व सुनाई ना दे रहा हो। अगर वास्तव में किसी तरह की सुविधाओं में कमी नहीं है तो फिर लोगों को ऑक्सीजन के लिए दर-दर क्यों भटकना पड़ रहा है ? अव्यवस्था से लोगों की जाने क्यों जा रहे हैं।? अस्पतालों के बाहर कोरोना मरीजों का इलाज ना करने की नोटिस क्यों लगा दी गई? खुद बीजेपी विधायक कौशल किशोर ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर धरने की चेतावनी क्यों दी ? दवाओं और ऑक्सीजन को लेकर कितना भ्रष्टाचार हो रहा है,देश को दिखाई और सुनाई पड़ रहा है फिर सरकार क्यों चुप क्यों है ? ये सभी सवाल सरकार के जवाबदेही में खड़े हैं। देश की हर जनता के मन में उमड़ रहे हैं।

सविंधान से हटाना चाहिए मताधिकार
कलयुग और भ्रष्टाचारी दुनिया में अब जनता को उसकी मताधिकार का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है, बल्कि अब सत्ता पर बैठे लोगों ने नागरिकों के मत पर अधिकार जमा लिया है। अब देश के नागरिकों को बताया जाता है कि उन्हें किस नेता को वोट देना है,किस चुनाव चिन्ह पर निशान लगाना है। देश में भ्रष्टाचार, अपराध, ब्लैक मेलिंग, घूसखोरी कारण बस यही है। भारत के संविधान से यह अधिकार हटा देना चाहिए ताकि किसी जागरूक नागरिक का मज़बूरी में अपना कीमती वोट भ्रष्टाचार में शामिल न कर सके । देश के नागरिकों को लगता है कि वोटिंग करना उनका अधिकार है लेकिन शायद वह यह नहीं जानते कि वह अपना अधिकार खो चुके हैं। एक वोट हजारों ,लाखों रुपयों में खरीदा जाता है। देश को आज भ्रष्ट बनाने में राजा और प्रजा दोनों का हाथ हैं।

 

मधुमिता वर्मा

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