धार्मिक स्थलों में अवैध रूप से लगे लाउडस्पीकर हटेंगे
मंडलायुक्त 30 अप्रैल तक थानेवार भेजेंगे रिपोर्ट
लखनऊ । राज्य सरकार ने प्रदेश भर में विभिन्न स्थानों पर अवैध रूप से और मानकों के विपरीत लगे लाउडस्पीकरों को हटाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय पर अमल के लिए राज्य के सभी जिलों के रिपोर्ट मांगी गई है। मांगी गई रिपोर्ट को 30 अप्रैल तक राज्य मुख्यालय पर भेजने के निर्देश दिए गए हैं।
राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों से थानेवार ऐसे धर्मस्थलों की सूची बनाने के लिए कहा है जहां लाउडस्पीकर लगा है और वे ध्वनि सीमा के मानकों का पालन किए बगैर उसका इस्तेमाल हो रहा है।
जिलों को भेजे गए निर्देश में यह भी कहा गया है कि धर्म स्थलों में ध्वनि संबंधित नियमों का पालन करने की वे प्राथमिक समीक्षा रिपोर्ट भी भेजें। सभी जिलों से इस आशय की रिपोर्ट मंडलायुक्त के पास जाएगी और मंडलायुक्त उसे राज्य सरकार को भेजेंगे। जिन जिलों में कमिश्नरेट प्रणाली है उन जिलों की रिपोर्ट पुलिस आयुक्त भेजेंगे। सारे जिलों से रिपोर्ट आने के बाद जिन जिलों में अवैध रूप से और ध्वनि मानकों का पालन नहीं करने वाले लाउडस्पीकर लगे होंगे उन धार्मिक स्थलों से ऐसे लाउडस्पकर को हटाने के लिए संबंधित धर्म के गुरुओं से बातचीत की जाएगी और उन्हें हटाया जाएगा।
गौरतलब है कि कुछ लोगों द्वारा विभिन्न धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर को बजाने का विरोध हो रहा है। इसका कारण अनचाहा शोर यानी ध्वनि प्रदूषण है। ऐसे लोग सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हैं। उनका कहना है कि ध्वनि प्रदूषण पर रोक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिए गए अपने फैसले में कह चुका है कि जबरदस्ती ऊंची आवाज यानी तेज शोर सुनने को मजबूर करना मौलिक अधिकार का हनन है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले, मौजूदा नियम कानून देखें तो तय सीमा से तेज आवाज में लाउडस्पीकर नहीं बजाया जा सकता।
ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई 2005 का है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती।