Noida Health News : गठिया रोग की जागरूकता के लिए फेलिक्स हॉस्पिटल ने किया वॉकथॉन का आयोजन
नोएडा : सेक्टर 137 फेलिक्स हॉस्पिटल की ओर से बुधवार को विश्व गठिया दिवस वॉकथॉन का आयोजन हुआ। फेलिक्स हॉस्पिटव से बायोडाइवर्सिटी पार्क तक आयोजित वॉकथॉन में हिस्सा लेने के लिए लोगों ने पंजीकरण कराया था। वॉकथॉन में हिस्सा लेने वाले लोगों ने विश्व गठिया दिवस पर गठिया को हराने की शपथ ली।कार्यक्रम का आयोजन गठिया के लिए चार कदम की मुहिम का हिस्सा बनें थीम पर आयोजित हुआ।
डॉ. डीके गुप्ता ने बताया कि अब गठिया बुढ़ापे की बीमारी नहीं रही। कम उम्र के लोगों को भी गठिया घेर रही है। 35 से 40 साल के लोग बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। प्रत्यारोपण तक की नौबत आ रही है। गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ. किरण सेठ बताया कि शुरुआत में लोग जोड़ों में दर्द को नजरअंदाज करते हैं। युवाओं में कूल्हे के पीछे हिस्से में दर्द की समस्या भी बढ़ी है। यह रीढ़ की हड्डी में परेशानी की वजह से भी हो सकता है। ऐसे मरीजों को न्यूरोलॉजिस्ट देखते हैं। वहीं कूल्हे के सामने यानी जांघ के हिस्से में दर्द होता है तो यह गठिया की वजह हो सकता है। गठिया पीड़ित करीब 30 से 40 मरीज समय पर इलाज नहीं कराते। इससे समस्या गंभीर होती है। गठिया से बचने के लिए शरीर का वजन न बढ़ने दें। क्योंकि शरीर का वजन बढ़ने का सबसे ज्यादा असर जोड़ों पर पड़ता है। सीढ़ी चढ़ें तो घुटने जवाब दे जाते हैं। हाथों की उंगलियों में अलग दर्द है। रीढ़ की हड्डी की तो बात ही छोड़िए। आफिस में बैठें या घर में आराम करें, हड्डी कराहती रहती हैं। इन सबका कारण है कार्पोरेट कल्चर। इस संस्कृति में रचे-बसे कम उम्र के लोग अब जोडों के दर्द से कराहने लगे हैं। 10 साल पहले तक गठिया बड़ी उम्र का रोग था। इसकी शुरूआत आम तौर पर 60-65 साल में होती थी। अब यह 30 से 35 साल में हो रही है। सबसे अधिक रोगी कार्पोरेट में सेवाएं दे रहे प्रोफेशनल्स हैं। इनकी औसत उम्र 30 से लेकर 45 के बीच है। कारण है घंटों एसी में बैठकर काम करना। कीबोर्ड पर उंगलियों का चलना। कसरत से दूर जाना। सुबह टहलने की फुर्सत न होने के कारण प्रकृति से भी दूर जाना। इसके अलावा खानपान भी बड़ा जिम्मेदार है। हड्डियों को मजबूत रखने वाला शुद्ध दूध उपलब्ध नहीं है। इससे कैल्शियम की कमी होती है। ताजा फल, सब्जियां भी नहीं हैं। इनमें केमिकल के स्प्रे ने जहरीला बना दिया है। यही हाल भूमिगत पानी का है। खेतों में केमिकल का छिड़काव धीरे-धीरे जमीन में जा रहा है। इससे भूमिगत जल मीठा होने की बजाए खारी हो चला है। इसे शोधित करके पीने में भी केमिकल का प्रयोग किया जाता है। हडिड्यों को दर्द देने के पीछे यही खास कारण कहे जा सकते हैं। गठिया या जोड़ों के दर्द का पता चलते ही इसका इलाज कराना जरूरी हो गया है। दवाओं और खानपान में बदलाव के जरिए इसे काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। अन्यथा यह जीवन भर का दर्द दे सकता है। हालत अधिक बिगड़ने पर आपरेशन तक की नौबत आ सकती है। गठिया किसी भी हिस्से में हो सकता है। जोड़ों में यूरिक एसिड जमा होना इसका प्रमुख कारण है। यूरिक एसिड गलत खानपान और जीवनशैली के कारण बनता है। रोग होने पर दही, खट्टी और ठंडी छाछ, आइस्क्रीम, दालें, कुल्फी, पैक्ड आयटम नहीं खाएं।