एडवाइजरीः कैसे करें फाल आर्मी वर्म कीट की पहचान और उससे बचाव के उपाय
फर्रूखाबाद, कन्नौज, इटावा एवं मैनपुरी आदि जिलों में दिखा इसका प्रकोप, बचाव करना बहुत ही जरूरी
नोएडा। गौतमबुद्ध नगर जिले के जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने जिले के किसानों को सलाह दी है कि प्रदेश के कुछ जिलों में फाल आर्मी वर्म कीट का प्रकोप देखा गया है। इनमें फर्रूखाबाद, कन्नौज, इटावा एवं मैनपुरी जिले शामिल हैं।
कीट से बचाव के लिए एडवाइजरी जारी
उन्होंने कहा कि इसे ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन लखनऊ ने इस कीट के पहचान एवं प्रबन्धन के लिए एडवाइजरी जारी की है।
कीट की पहचान और लक्षण
उन्होंने फाल आर्मी वर्म कीट की पहचान एवं लक्षण तथा अनुकूल दशाओं के बारे में जानकारी दी।
अनुकूल दशाएं- यह एक बहुभोजीय (Pollyphagous) कीट है। इसके कारण अन्य फसलों जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, गेहूं तथा गन्ना आदि फसलों को हानि पहुंचा सकता है। इस कीट के प्रकोप के लिए प्रदेश की जलवायु अनुकूल है तथा देर से बुवाई एवं संकर किस्में इस कीट के प्रकोप के लिए संवेदनशील हैं।
उन्होंने फाल आर्मी वर्म कीट की पहचान एवं लक्षण के संबंध में बताया कि इस कीट की मादा ज्यादातर पत्तियों की निचले स्तर पर अण्डे देती है। कभी-कभी पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी अण्डे देती है। इसकी मादा एक से ज्यादा पर्त में सफेद अण्डे देकर सफेद झाग से ढक देती है। अण्डे धूसर से हरे व भूरे रंग के होते हैं। फाल आर्मी वर्म लार्वा भूरा धूसर रंग का होता है, जिसके शरीर के साथ अलग से टयूबरकल दिखता है। इस कीट के लार्वा अवस्था में पीठ के नीचे तीन पतली सफेद धारियाँ और सिर पर एक उल्टा अंग्रेजी शब्द का वाई (Y) दिखता है। इसके शरीर के दूसरे अंतिम खण्ड पर वर्गाकार चार बिन्दु दिखाई देते हैं तथा अन्य खण्ड पर छोटे-छोटे बिन्दु सम्बलम आकार में व्यवस्थित होते हैं। यह कीट फसल की लगभग सभी अवस्थाओं में नुकसान पहुँचाता है, लेकिन मक्का के पत्तों के साथ ही बाली को विशेष रूप से प्रभावित करता है। इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधे के डण्ठल आदि के अन्दर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इस कीट के प्रकोप की पहचान फसल की बढ़वार की अवस्था में जैसे पत्तियों को खुरच कर खाने से पारदर्शी छिल्ली का बनना पत्तियों में छिद्र एवं कीट के मल-मूत्र से पहचान जा सकता है। मल महीन भूसे बुरादे जैसा दिखाई देता है।
कैसे करें बचाव
उन्होंने बताया कि फसल की गहन निगरानी एवं सर्वेक्षण करना चाहिए। बुवाई से पूर्व गहरी जुताई करने से FAW के प्यूपा धूप के सम्पर्क में आकर एवं परभक्षी द्वारा खाकर नष्ट कर दिए जाते हैं। FAW के अण्डों एवं लार्वा को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए।
उन्होंने बताया कि ट्रैप फसल जैसे नेपियर की 3-4 लाइन मक्के की फसल के चारों ओर बुवाई करने से इसका प्रभावी नियंत्रण होता है। ट्रैप फसलों पर इसका प्रकोप दिखाई देने पर 5 प्रतिशत एनएसकेई (नीम ऑयल करनाल एक्सट्रेक्स) या एजाडिरेक्टिन 1500 पीपीएम (नीम आयल) का छिडकाव करना चाहिए। मक्के के साथ किसी दलहनी फसल की सहफसली खेती अपनाना चाहिए। फसल की प्रारंम्भिक अवस्था में प्रकोप दिखाई देने पर बालू एवं चूना को 9:1 के अनुपात में प्रभावित पौधों के गोभ में बुरकाव करना लाभकारी होता है। अण्डे परजीवी 2 से 5 ट्राइकोग्रामाकार्ड एवं टेलोनोमस रेमस का प्रयोग अंडे दिए जाने की अवस्था में करने से इनकी संख्या की बढोत्तरी में रोक लगायी जा सकती है।
इन दवाओं का करें छिड़काव
उन्होंने बताया कि एनपीवी 250 एलई, मेटाराइजियम एनिप्सोली, नोमेरिया रिलाई, ब्यूवेरिया बेसियाना एवं पेनीसिलिटेन लेकानी आदि जैविक कीटनाशकों का प्रारंम्भिक अवस्था में ही समय से प्रयोग अत्यन्त प्रभावशाली है। फसल की प्रारंम्भिक अवस्थों में यांत्रिक विधि के तौर पर शाम (7 से 9 बजे तक) में 3 से 4 की संख्या में प्रकाश प्रपंच एवं 8 से 10 की संख्या में बर्ड पर्चर T आकार की डण्डे जिस पर चिडिया बैठे, प्रति एकड़ लगाना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए स्पीनेटोरम 11.7 प्रतिशत एससी 0.5 मिलीलीटर .या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 प्रतिशत एससी 0.4 मिलीलीटर अथवा थायोमेथाक्साम 12.6 प्रतिशत + लैम्डा साईहैलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत जेडसी 0.25 मिलीलीटर को प्रति ली0 पानी में घोल बनाकर भूहा (Tassel) की अवस्था से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।