ऐतिहासिकः विधानसभा में लगी अदालत, 6 पुलिसकर्मियों को सजा
वर्ष 1962 के बाद लगी इस तरह की अदालत, रात 12 बजे तक रहेंगे कारावास में, सपा ने जताया ऐतराज, सरकार ने बताया जायज
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा में आज शुक्रवार को ऐतिहासिक कार्य हुआ। विधानसभा में ही अदालत लगाई गई। अदालत ने एक पुराने मामले में छह पुलिस कर्मियों को एक दिन (आज रात 12 बजे तक) के कारावास की सजा सुनाई। समाजवादी पार्टी ने इसे गलत परंपरा करार दिया है जबकि सत्तापक्ष ने इसे सही ठहराया है।
विधानसभा अध्यक्ष ने सुनाई सजा
विधानसभा में लगी अदालत में विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कानपुर के एक पुराने मामले में तत्कालीन आरोपी पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई। इस सजा में दोषी पुलिस कर्मियों को एक दिन का कारावास भुगतना होगा। सजा रात बारह बजे तक की है।
मंत्री ने सजा कम करने की मांग
विधानसभा में लगी अदालत में विधानसभा अध्यक्ष ने जब पुलिस कर्मियों को सजा सुना दी तब कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने अदालत से सजा कम करने की मांग की। उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों को रात तक नहीं बल्कि कुछ घंटे ही कारावास में रखे जाएं लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने शाही की अपील को ठुकरा दिया और उनकी बात नहीं मानी। उन्होंने अपनी सजा बरकरार रखी। उन्होंने दोषी पुलिस कर्मियों को जेल भेज दिया। दोषी पुलिस कर्मियों को विशेष जेल में भोजन और पानी दिया जाएगा।
कौन हैं सजा पाए पुलिस कर्मी
दोषी पुलिस कर्मचारियों में तत्कालीन क्षेत्राधिकारी (सीओ) अब्दुल समद, तत्कालीन थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, तत्कालीन उपनिरीक्षक त्रिलोकी सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल छोटेलाल यादव, विनोद मिश्र और मेहरबान सिंह शामिल हैं।
इन पर विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का आरोप था। जो विधानसभा में लगी विशेष अदालत में सिद्ध हो गया। इन्हें विधानसभा में लगी विशेष अदालत के कटघरे में खड़ा किया गया था। अदालत में बकायदा सुनवाई हुई उन्हें आरोप सुनाया गया। दोनों पक्षों ने अपनी बात रखी।
क्या है मामला
मामला वर्ष 2004 का है। तब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। सपा सरकार में बिजली कटौती के मामले को लेकर सतीश महाना (तब विधायक थे और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष हैं) कानपुर में धरने पर बैठे थे। उस समय पार्टी के कई विधायक और नेता उनके समर्थन में धरने में शामिल होने जा रहे थे। तब पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए लाठीचार्ज कर दिया था। इस लाठीचार्ज मं उस समय विधानसभा सदस्य रहे सलिल विश्नोई का पैर पुलिस की लाठी की चोट के कारण टूट गया था। इससे उन्हें महीनों बेड पर रहना पड़ा था।
विशेषाधिकार हनन की नोटिस दी थी
लाठीचार्ज की घटना और उसमें बुरी तरह से घायल होने के बाद उन्होंने 25 अक्टूबर 2004 को विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना की नोटिस दी थी।
साल भर से अधिक हुई थी सुनवाई
विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना मामले की नोटिस पर उस समय करीब डेढ़ साल तक सुनवाई हुई थी। इसके बाद इन पुलिसकर्मियों को सर्वसम्मति से दोषी पाया गया था लेकिन आज तक सजा नहीं हुई थी।
राजनीति शुरू
पुलिसकर्मियों को सजा सुनाने और विशेष जेल में भेजने के मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है। विधानसभा में नेता विरोधी दल एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे गलत करार दिया है। उन्होंने कहा कि इससे गलत परंपरा पड़ेगी। उधर, विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना और उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने इसे उचित बताया है। गौरतलब है कि विधानसभा में इस तरह की विशेष अदालत वर्ष 1962 में लगी थी। तब विधानसभा में कुछ अधिकारियों को कारावावास की सजा सुनाई थी।