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और मिट्टी में मिला दिया

जवान बेटे का एनकाउंटर और मिट्टी में मिलता दम-खम! काश, गुनाह के रास्ते पर चलने से पहले अतीक ने एक बार भी सोचा होता...।

जितेन्द्र बच्चन

यह तो होना ही था। क्योंकि गुनाह कभी नहीं छिपता और गुनहगार को उसके किए की सजा भी मुकर्रर होती है। यूपी एसटीएफ को वाकई बड़ी सफलता मिली है। एडीजी अमिताभ एस को बधाई! ऑपरेशन चलाने वाले डिप्टी एसपी नवेन्दु, विमल कुमार और उनकी पूरी टीम को इसके लिए शाबासी मिलनी ही चाहिए। लेकिन बहूबली अतीक के हिस्से में क्या आया? इस पाक रमजान के महीने में बेटे का गम। मौत का मातम और मिट्टी में मिलता दम-खम! काश, गुनाह के रास्ते पर चलने से पहले उसने एक बार भी सोचा होता तो शायद आज खून के आंसू न रोने पड़ते।
90 का दशक की बात है। इसके पहले हम इलाहाबाद में ही रहते थे। उन दिनों अतीक की तूती बोलती थी। पूरे शहर में उसका आतंक था। तब हमारा दफ्तर मिर्जा गालिब रोड पर हुआ करता था। अक्सर शाम को यह खबर मिल जाती कि आज अतीक ने किसी को मारा-पीटा है। उसके परिवार वालों ने जबरन किसी की जमीन पर कब्जा किया है। कई बार ये मामले अखबार की सुर्खियां भी बनते थे लेकिन नतीजा ढाख के तीन पात होता। ऐसे में जल्दी कोई थाना-पुलिस करने की नहीं सोचता था और अगर किसी ने सोच भी लिया तो समझो उसकी शामत आ गई। अतीक के ही आदमी उसका रहना-खाना मुश्किल कर देते।
बाहुबल और धनबल के साथ-साथ गुनाह बढ़ता गया। सियासत की शह मिली तो अतीक और भी कई बड़े-बड़े मंसूबों को अंजाम देने लगा। परिवार का हर आदमी सत्ता के नशे में झूमता रहता। नाते-रिश्तेदार तक अतीक के नाम पर लोगों को धमका देते, मनमर्जी करते। अतीक भी सोचता, अब उससे कोई नहीं टकरा सकता। स्याह करे चाहे सफेद, जीत उसी की होगी। राजू पाल और उमेश पाल जैसे कुछ लोगों ने कभी टकराने की कोशिश की तो उसका काम तमाम कर दिया गया। अतीक का काफिला जिधर से निकल जाता, लोग घरों में दुबक जाते। माफिया राज कायम कर लिया। सोचता था- उसकी सत्ता है, उसकी हुकूमत है, जो चाहेगा अब वही होगा। उसे कोई नहीं हरा सकता, लेकिन भूल गया कि रावण भी यही सोचता था, जिसे पुरुषोत्तम श्रीराम ने एक दिन मिट्टी में मिला दिया।
देर है अंधेर नहीं। कानून से कोई बच नहीं सकता। हर अपराधी को उसके किए की सजा मिलती है। कल तक जहां दहशत थी, आज उसी उत्तर प्रदेश में बड़े-बड़े गुंडे-बदमाशों की पैंट गीली हो जाती है। यह हम नहीं कह रहे हैं, खुद सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ का 8 अप्रैल का बयान है। इससे पहले उन्होंने उमेश पाल की हत्या के बाद विधानसभा में कहा था कि वह जितने माफिया हैं, उनको मिट्टी में मिला देंगे। अब गुरुवार की घटना से आम आदमी भी कहने लगा है कि योगी जी जो कहते हैं, वह करते हैं। कम से कम अपराधियों के बारे में तो उनकी बात सत्य होती दिख रही है। सोचिए जरा, क्या उम्र थी असद की, लेकिन प्रयागराज में 24 फरवरी को इसने और इसके साथियों ने उमेश पाल व उसके दोनों पुलिस सुरक्षाकर्मियों को दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया।
लेकिन पिता के नक्शे कदम पर चलना असद को भारी पड़ गया। खून-कत्ल करने वालों को कोई कैसे माफ कर सकता है। यही कारण है कि 13 अप्रैल को जब प्रयागराज में अतीक को कोर्ट में पेश किया गया तो एक तरफ जहां उसके लखते जिगर के झांसी में एनकाउंटर होने की खबर मिली, वहीं तमाम लोग उस पर जूते-चप्पलों की बौछार करने को अक्रोशित थे और अतीक जान बचाने के लिए पुलिसकर्मियों के बीच भींगी बिल्ली की तरह छिपता नजर आ रहा था। चार बेटे और हैं अतीक के, जिनमें से उमर और अली रंगदारी व हत्या के प्रयास के मामले में जेल में बंद हैं। बाकी के दो नाबालिग बेटे बाल संरक्षण गृह में हैं। पत्नी शाइस्ता परवीन पर 50 हजार का इनाम है। वह फरार है। खुद अतीक को जान के लाले पड़े हैं! गुनाह के रास्ते पर चलकर आखिर क्या बचा, सबकुछ तो मिट्टी में मिल गया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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