गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध का फौरी और दूरगामी होगा असर
कीमतों तुरंत कमी आने की उम्मीद, खाद्य सुरक्षा में मिलगी मदद
नई दिल्ली। भारत सरकार ने एक दिन पहले गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध लगाने की सूचना शुक्रवार को देर अधिसूचना जारी कर दी गई। भारत सरकार अचानक इस कदम से विश्व भर में हलचल मच गई। इसी के साथ ही उन देशों में निराशा व्याप्त है जो भारत से गेहूं का आयात करते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों को सैकड़ों देशों से गेहूं देने की मांग आई थी। गौरतलब है कि भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध का भारत पर फौरी और दूरगामी असर पड़ेगा।
केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाए जाने से देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा गेहूं की किल्लत और बढ़ती कीमतों के कारण बीते कुछ समय में स्थानीय बाजारों में आटे की कीमतों में जो तेजी आई है। गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध से कीमतों कमी आएगी।
केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर लगातार बढ़ती गेहूं की कीमतों को संभालने के लिए शनिवार को बड़ा फैसला किया। डाइरेक्ट्रेट जनरल आफ फारेन ट्रेड (डीजीएफटी) की अधिसूचना में कहा गया है कि सभी तरह के गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जा रही है। देश की खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है।
सरकार के इस फैसले से गेहूं और आटे बढ़तीमें कीमतों पर रोक लगेगी ही इनकी कीमतों तत्काल आएगी। सरकार के गेहूं का निर्यात तुरंत रोकने से सबसे बड़ा प्रभाव इसकी कीमत पर पड़ेगा, जो वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 40 फीसदी तक बढ़ चुकी है। इसी के साथ ही घरेलू स्तर पर बीते एक साल में गेहूं के दाम में 13 फीसदी का उछाल आया है। निर्यात पर रोक लगाए जाने से इसकी कीमत में तत्काल कमी आएगी।
गेहूं के निर्यात पर रोक से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएमपी) की कीमत में कमी आने के बाद दूसरा बड़ा फायदा ये होगा कि इसकी कीमत निर्धारित 2,015 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी के करीब पहुंच जाएगी। यहां बता दें कि शुक्रवार को दिल्ली के बाजार में गेहूं की कीमत लगभग 2,340 रुपये प्रति क्विंटल थी, जबकि निर्यात के लिए बंदरगाहों पर 2575-2610 रुपये प्रति क्विंटल की बोली लगाई गई थी।
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध से राज्यों से गेहूं खरीद को बढ़ावा मिलेगा। कीमत कम होने के कारण सरकार को उन राज्यों से अपनी खरीद को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, जहां व्यापारियों और जमाखोरों के पास कीमतों में और वृद्धि की उम्मीद में भंडार दबे हुए हैं। एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि फिलहाल 14 से 20 लाख टन गेहूं व्यापारियों के पास है।
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध से भारत सरकार को खाद्य सुरक्षा प्रबंधन में काफी मिलेगी। सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने में मदद की बात स्वीकार की गई है। इसके अलावा पड़ोसी और अन्य कमजोर देशों की जरूरतों का समर्थन करने के मामले में भी इसका बड़ा प्रभाव देखने को मिलेगा क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त मात्रा में स्टॉक मौजूद रहेगा।
आटा सस्ता होने से इसका लाभ देश को मिलेगा। गेहूं की किल्लत और बढ़ती कीमतों के कारण बीते कुछ हफ्तों में स्थानीय बाजारों में गेहूं के आटे की कीमतों में जोरदार तेजी देखने को मिली है। इस फैसले से आटे के दाम गिरेंगे और आम जनता को बड़ी राहत मिलेगी। रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल में गेहूं के आटे का अखिल भारतीय मासिक औसत खुदरा मूल्य 32.38 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो कि जनवरी 2010 के बाद से सबसे अधिक है।
एक तरीके से कह सकते हैं कि गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध को आम लोगों के हित में उठाया गया कदम कहा जा सकता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सरकार का वर्तमान हालातों के बीच उठाया गया यह कदम एक अच्छा कदम है, जो आम लोगों के हित में है। कृषि विशेषज्ञ रवींद्र शर्मा की मानें तो इस हीट वेब के कारण पहले से ही गेहूं के उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा है। उनका कहना है कि निर्यात ज्यादा होने से देश की खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा था। निजी क्षेत्र (प्राइवेट सेक्टर) बेलगाम घोड़े की तरह हो गए। इसका उदाहरण ये है कि चार साल के भीतर गेहूं की कीमत में जितना इजाफा हुआ, उससे पांच गुना ज्यादा तेजी आटे की कीमतों में आई है।
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध से देश के भंडारण (स्टॉक) में बढ़ोतरी होगी। रवींद्र शर्मा कहा कहना है कि सरकार के इस फैसले से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा और देश में भंडारण (स्टॉक) पर्याप्त रहेगा। उन्होंने 2005-07 के बीच तत्कालीन सरकार के प्राइवेट कंपनियों को किसानों से गेहूं खरीदने का अधिकार दिए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय बड़ी मात्रा में निर्यात के कारण केंद्र को दो साल के भीतर 7.1 मिलियन टन का बड़ा आयात करना पड़ा था, वो भी दोगुनी कीमत में। ऐसे में सरकार की ओर से उठाया गया ये कदम बड़ी राहत देने वाला साबित हो सकता है।
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध देश में चल रही योजनाओं के लिए फायदेमंद साबित होगी। गिरते माल का आकलन करने के बाद कुछ सप्ताह पहले ही सरकार ने मई से शुरू होने वाले पांच महीनों के लिए सरकार की मुफ्त राशन योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत वितरण के लिए राज्यों को गेहूं के स्थान पर 5.5 मिलियन टन चावल आवंटित करने का निर्णय लिया है। रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से कहा गया था कि इससे करीब 55 लाख टन गेहूं तुरंत निकल जाएगा, जिसका इस्तेमाल स्टॉक बनाने में किया जा सकता है। गेहूं का निर्यात रोके जाने से स्टॉक में इजाफा होगा और इस तरह की योजनाओं में फिर से गेहूं का वितरण शुरू किया जा सकेगा।
निर्यात पर प्रतिबंध से खाद्य महंगाई पर असर दिखेगा। सरकार के इस फैसले के चलते खाद्य महंगाई में भी कमी आने की संभावना है। बता दें कि देश में महंगाई आसमान छू रही है, खुदरा महंगाई एक बार फिर लंबी छलांग मारते हुए अप्रैल महीने में 7.79 फीसदी पर पहुंच चुकी है। इस बीच अप्रैल में खाद्य पदार्थों पर महंगाई 8.38 फीसदी के स्तर पर पहुंच चुकी है। देश में आटे का खुदरा मूल्य इस समय 12 साल के शीर्ष पर है। इसमें कमी आने से जनता को राहत मिलेगी।
इनके अलावा गेहूं पर महंगाई दर में गिरावट आना तय है। मार्च में भारत की थोक गेहूं मुद्रा स्फीति दर 14 फीसदी रही थी, जो पांच साल से ज्यादा समय का उच्च स्तर था। गेहूं की कीमतों में गिरावट आने पर इस मोर्चे पर भी राहत मिलेगी। इससे घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।