हिमाचल में राजनीतिक दल चलने लगे शतरंजी चाल
प्रतिभा सिंह पर दांव खेलकर कांग्रेस की मतदाताओं को साधने की कोशिश
प्रहलाद वर्मा, शिमला। हिमाचल प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न दलों द्वारा शतरंजी चाल चले जा रहे हैं। हिमाचल में मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस में परपरागत रूप से टक्कर होता आया है। इस बार आम आदमी पार्टी (आप) भी चुनाव मैदान में उतरने को तैयार है।
हिमाचल प्रदेश में अपनी शतरंजी चाल के तहत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का मुद्दा बड़ी खूबसूरती से सुलझा लिया है। इसी चाल के तहत और दूरगामी परिणाम वाली सोची समझी रणनीति के तहत उसने पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह पत्नी प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत कर अन्य दलों को कड़ी चुनौती दी है। हिमाचल में कांग्रेस के अब तक कुलदीप राठौर प्रदेश अध्यक्ष थे। उन्होंने इस पद तीन साल कार्य किया। उनके नेतृत्व में हिमाचल में तीन विधानसभा और एक लोकसभा के हुए उपचुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता मिली। तीनों ही विधानसभा और लोकसभा की सीट कांग्रेस ने अपने पक्ष में कर ली। इससे कांग्रेस के हौसले काफी बुलंद हैं। अपनी चुनावी तैयारियों में वे अन्य दलों से काफी आगे है।
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में कुलदीप राठौर तो थे ही, प्रतिभा सिंह, मुकेश अग्निहोत्री, सुखबीर सिंह सुक्खू, हर्षवर्द्धन चौहान, हर्ष महाजन आदि शामिल थे। ये नेता अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं। कांग्रेस हाईकमान को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तय करना बड़ा मुश्किल लग रहा था। हिमाचल के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की इसी दौरान निधन हो गया। हिमाचल में वीरभद्र सिंह की आम मतदाताओं पर अच्छी पकड़ रही है। उनके निधन से एक तरह से हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर चल रही थी। इस सहानुभूति लहर को कांग्रेस नेतृत्व ने मंडी लोकसभा से सांसद राम स्वरूप शर्मा के निधन से रिक्त हुई सीट से वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को चुनाव मैदान में उतार दिया। मंडी लोकसभा सीट भाजपा के पास थी। चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद यह सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीन लिया। यही नहीं तीनों विधानसभा की सीट भी कांग्रेस ने जीत ली। राजनीतिक पंडित चुनाव परिणाम पर सीधा असर वीरभद्र सिंह के निधन से चली सहानुभूति लहर बता रहे हैं।
कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार रहे नेताओं को भी निराश नहीं किया। उन्हें भी महत्वपूर्ण पद देकर पार्टी में गुटबाजी खत्म करने की कोशिश की गई है। पिछले दिनों कांग्रेस हाईकमान द्वारा संगठन में किए गए बड़े फेरबदल में जहां प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष बनाकर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की गई है वहीं चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर अपने नेताओं को संतुष्ट करने का भरसक प्रयास किया गया है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक सुखविंद्र सुक्खू को चुनाव प्रचार कमेटी की कमान सौंपी गई है। मुकेश अग्निहोत्री पहले नेता प्रतिपक्ष थे। उन्हें इसी पद पर बरकरार रखा गया है। विधायक हर्षवर्द्धन चौहान को प्रतिपक्ष का उपनेता बनाया गया। विधायक जगत सिंह नेगी को मुख्य सचेतक का पदभार दिया गया। चुनावी वर्ष में क्षेत्रीय संतुलन बी साधने की कोशिश दिख रही है। इसी के तहत चंबा से पूर्व मंत्री हर्ष महाजन, कांगड़ा से विधायक पवन काजल, हमीरपुर से विधायक राजेंद्र राणा और सिरमौर से विधायक विनय कुमार को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। हाईकमान यह पहले ही तय कर चुका था कि प्रदेश में इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा नहीं की जाएगी। कांग्रेस के कार्यकर्ता और प्रदेश नेता उत्साह से भरपूर हैं।
उधर भारतीय जनता पार्टी गुटबाजी की शिकार है। चूंकि हिमाचल में इस समय भाजपा सत्तासीन है। पूरे देश में महंगाई चरम सीमा पर है। पेट्रोल और डीजल के दाम काफी हद तक बढ़े हुए हैं। भाजपा के कई मंत्रियों और कुछ प्रमुख नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। भ्रष्टाचार के आरोप में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे डा.राजीव बिंदल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। वे इस समय नाहन विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। हालांकि बिंदल खुद पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को नकारते रहे हैं और विश्वास व्यक्त करते रहे हैं कि एक न एक दिन सच्चाई लोगों के सामने आएगी। हालांकि उनका यह विश्वास सिर्फ राजनीतिक ही माना जा रहा है। महंगाई और मंत्रियों, नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब भाजपा का प्रदेश नेतृत्व नहीं दे पा रहा है। यही कारण रहा है कि लोकसभा की एक और विधानसभा तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में हिमाचल भाजपा के दिग्गज नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करने ही नहीं गए। भाजपा संगठन के कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से उनमें असंतोष जबरदस्त है। किसी भी मंच पर कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं का आरोप है। नेताओं द्वारा अपमानित किए जाने से कई कार्यकर्ता मुख्य संगठन से अलग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठनों में अपनी सेवाएं देने दे रहे हैं। ऐसे कार्यकर्ताओं की भाजपा नहीं छोड़ने की मजबूरी है। वे हताश हो भाजपा के प्रति निष्क्रिय हो गए हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा (जेपी नड्डा) का हिमाचल प्रदेश का कई बार दौरा कर चुके हैं। वे प्रदेश नेतृत्व, प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर चुके हैं। लेकिन भी कार्यकर्ताओं की हताशा को न तो दूर कर सके हैं और न ही आम मतदाताओं को नेताओं और मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का संतोषजनक जवाब दे सके हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं की हताशा विधानसभा चुनाव परिणाम पर असर डाले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
पंजाब का चुनाव परिणाम अपने पक्ष में आने से आप काफी उत्साहित है। यही कारण है कि दिल्ली से सटे राज्यों और इससे आसपास के राज्यों में चुनाव मैदान में उतरने से वह गुरेज नहीं कर रही है। चुनाव मैदान में उतरने से पूर्व ही वह लोकलुभावन वादे कर चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में करने की कोशिश में है। यह अलग बात है कि दिल्ली और पंजाब को छोड़कर आप के वादे पर आम मतदाताओं ने विश्वास नहीं किया। यही कारण दिल्ली के नजदीकी राज्य उत्तराखंड और दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने उसे बुरी तरह से नकार दिया। मतदाताओं के नकारे जाने के बाद दोनों ही राज्यों में अधिकांश सीटों पर आप प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। बावजूद इसके आप नेतृत्व का चुनाव मैदान में उतरने का उत्साह कम नहीं हुआ है। अगले साल ही हिमाचल के साथ ही गुजरात विधानसभा के भी चुनाव होने हैं। गुजरात विधानसभा के चुनाव मैदान में आप उतरने का पूरा मन बना चुकी है। इसी तहत दोनों ही राज्यों में आप के शीर्षस्थ नेताओं के दौरे शुरू हो चुके हैं। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस और भाजपा से नाराज नेताओं पर आप द्वारा डोरे डाले जा रहे हैं। आप की भाजपा और कांग्रेस के ऐसे नेताओं पर नजर है जो किसी न किसी कारण अपने दल से नाराज हैं। चुनाव के दौरान नाराज नेताओं की संख्या बढ़ने की उम्मीद है। ऐसे नेताओं को अपने पाले में खींचने की आप की कोशिश के कयास लगाए जा रहे हैं।