ईरान के संकेत और भारत की दूरी: क्यों चर्चा में है परमाणु अप्रसार संधि (NPT)?

नोएडा: हाल के दिनों में इज़रायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव के चलते एक बार फिर परमाणु अप्रसार संधि (NPT) सुर्खियों में है।
बताया जा रहा है कि ईरान की संसद में NPT से बाहर निकलने का प्रस्ताव लाया गया है, हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि अब तक नहीं हुई है।
इस पूरे घटनाक्रम ने दुनिया का ध्यान एक बार फिर परमाणु हथियारों के नियंत्रण से जुड़ी इस महत्वपूर्ण संधि की ओर खींचा है।
आखिर क्या है NPT – परमाणु अप्रसार संधि?
NPT यानी नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी, एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य है:
परमाणु हथियारों का प्रसार रोकना
परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना
शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहन देना
यह संधि 1968 में तैयार हुई और 1970 में लागू की गई। इसमें पाँच देशों — अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन — को परमाणु संपन्न राष्ट्र के रूप में मान्यता दी गई है।
बाकी देशों को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं दी जाती, हालांकि वे शांतिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु तकनीक का उपयोग कर सकते हैं।
भारत क्यों नहीं है NPT का हिस्सा?
भारत ने NPT पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए। भारत का मानना है कि यह संधि भेदभावपूर्ण है, क्योंकि यह कुछ गिने-चुने देशों को ही परमाणु हथियार रखने का अधिकार देती है जबकि बाकी देशों को इससे वंचित करती है।
भारत का कहना है कि यह संधि वैश्विक निरस्त्रीकरण की दिशा में प्रभावी नहीं रही है। भारत ने 1974 और 1998 में अपने परमाणु परीक्षणों से खुद को परमाणु शक्ति संपन्न घोषित किया और ‘पहले इस्तेमाल न करने की नीति (No First Use)’ को अपनाया।
क्या है न्यूक्लियर ट्रायड?
भारत उन चुनिंदा देशों में से है जिसने न्यूक्लियर ट्रायड हासिल कर लिया है। इसका मतलब है कि भारत के पास परमाणु हथियार:
1. ज़मीन से लॉन्च (मिसाइलें)
2. समुद्र से लॉन्च (पनडुब्बियों)
3. हवा से लॉन्च (लड़ाकू विमानों)
इन तीनों माध्यमों से हमला करने की क्षमता रखता है। इसका मुख्य मकसद है, किसी भी हालात में जवाबी हमला सुनिश्चित करना, यानी अगर दुश्मन हमला करे तो भारत की प्रतिक्रिया निश्चित हो।
NPT और परमाणु निषेध संधि में अंतर
NPT (परमाणु अप्रसार संधि) और TPNW (परमाणु हथियार निषेध संधि) दो अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय समझौते हैं:
पहलू NPT TPNW
लागू वर्ष 1970 2021
उद्देश्य परमाणु प्रसार रोकना, निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना परमाणु हथियारों पर पूर्ण प्रतिबंध
परमाणु देशों की भूमिका मान्यता प्राप्त 5 परमाणु देश सभी परमाणु हथियारों को त्यागने का आग्रह
सदस्य देश 191 ~ 90
TPNW को संयुक्त राष्ट्र ने 2017 में अपनाया और 2021 से लागू किया। इसका मकसद सभी देशों को परमाणु हथियार पूरी तरह छोड़ने के लिए बाध्य करना है, जबकि NPT कुछ देशों को परमाणु शक्ति रखने की छूट देता है।
NPT की कमज़ोरियां और आलोचना
NPT में कई ऐसे लूपहोल हैं जिनकी वजह से इसकी आलोचना होती रही है:
चुनिंदा देशों को ही अधिकार: यह संधि केवल 5 देशों को परमाणु संपन्न मानती है, जिससे बाकी देशों में असंतोष रहता है।
निरस्त्रीकरण में सुस्ती: परमाणु देशों को हथियार धीरे-धीरे खत्म करने की बात कही गई, लेकिन इसमें कोई बड़ी प्रगति नहीं हो पाई।
शांतिपूर्ण तकनीक का दुरुपयोग: कई देश शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के बहाने हथियार तकनीक विकसित करने की कोशिश करते हैं — जैसे कि ईरान पर आरोप लगता रहा है।
संधि से बाहर निकलने का विकल्प: कोई भी देश “राष्ट्रीय हितों के लिए खतरे” का हवाला देकर NPT से बाहर निकल सकता है, बशर्ते वह तीन महीने पहले सूचना दे।
NPT की समीक्षा और आगे की राह
हर 5 साल में NPT की समीक्षा की जाती है, जिसमें सदस्य देश इसके अमल और भविष्य की दिशा पर विचार करते हैं। पिछली समीक्षा 2022 में हुई थी और अगली 2027 में होनी तय है।
इन समीक्षाओं में अक्सर मतभेद और असहमति देखने को मिलती है, क्योंकि सभी देशों के लिए परमाणु नीति, सुरक्षा चिंताएं और रणनीतिक लक्ष्य अलग-अलग होते हैं।
निष्कर्ष
NPT जैसे समझौते दुनिया को परमाणु युद्ध के खतरे से बचाने की दिशा में एक कोशिश हैं, लेकिन जब तक ये संधियाँ समानता और पारदर्शिता के साथ लागू नहीं होतीं, तब तक ये केवल कागज़ी दस्तावेज़ बनकर रह सकती हैं।
भारत जैसे देश जो जिम्मेदार परमाणु नीति अपनाते हैं, वे चाहते हैं कि कोई भी संधि सबके लिए समान और निष्पक्ष हो।