बढ़ा कदः त्रिपुरा राज्य का संगठन प्रभारी बन शर्मा ने दिया विरोधियों को करारा जवाब
त्रिपुरा संगठन का प्रभारी बनने के बाद डॉ शर्मा की चुनौतियां भी बढ़ी, बड़ी लाइन खींचना सबसे बड़ी चुनौती
नोएडा। गौतमबुद्ध नगर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉक्टर महेश शर्मा का जिस प्रकार से पार्टी हाईकमान ने त्रिपुरा का प्रभार सौंपकर कद बढ़ाया है उससे उनके राजनैतिक विरोधी भौचक्क रह गए हैं। हालांकि त्यागी प्रकरण के बाद उनके राजनैतिक विरोधी उनके खिलाफ एकजुट हो गए थे। इनमें भाजपा का एक गुट भी शामिल था जो बुरी तरह से उनके पीछे पड़ा हुआ था लेकिन विरोधियों के विरोध के बावजूद शर्मा बगैर उनकी परवाह किए मस्त होकर अपने काम में जुटे रहे।
त्रिपुरा का संगठन प्रभारी बने
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा (जेपी नड्डा) ने शुक्रवार की देर रात विभिन्न राज्यों के संगठन प्रभारियों और सह प्रभारियों के नियुक्ति की घोषणा की। नड्डा द्वारा घोषित 15 राज्यों के प्रभारी और सह प्रभारियों की सूची में गौतमबुद्ध नगर लोकसभा संसदीय क्षेत्र से भाजपा सांसद डॉ. महेश शर्मा को त्रिपुरा का प्रभारी के रूप में नाम दर्ज था। वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी ने बड़े नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। अब इस सूची में जब डॉ शर्मा को शामिल कर ही लिया गया है तब यह निर्विवाद रूप से तय हो गया है शर्मा अब पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार होने लगे हैं।
त्यागी प्रकरण के बाद बढ़ी थी मुसीबत
नोएडा के सेक्टर 93 बी स्थित ग्रैंड ओमेक्स सोसायटी में महिला से अभद्र व्यवहार के मामले में कथित भाजपा नेता श्रीकांत त्यागी का विडियो वायरल हुआ था, उस मामले में डॉ.महेश शर्मा के दबाव के कारण ही पुलिस ने उसके खिलाफ विभिन्न गंभीर आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज कर उसकी गिरफ्तारी के प्रयास तेज कर दिए थे। बाद में पुलिस पर जिस प्रकार से त्यागी के गिरफ्तारी पर दवाब था उससे पुलिस ने काफी प्रयास के बाद के बाद उसे मेरठ से गिरफ्तार कर लिया था।
विरोधियों को मिला राजनीति का मौका
श्री कांत त्यागी की गिरफ्तारी के बाद तो एक तरह से विरोधियों को डॉ. शर्मा के खिलाफ अभियान चलाने का मौका ही मिल गया था। इनमें कुछ विपक्ष के राजनीतिक दलों के साथ भाजपा का एक वर्ग भी शामिल था। यह धड़ा महेश शर्मा के विरोध को आड़ में रहकर खूब हवा दे रहा था। यहां तक कि जिस समय कुछ त्यागी समाज के लोगों की महापंचायत हुई उसमें एक शर्त डॉ. शर्मा के खिलाफ कार्यवाही की मांग भी शामिल थी। इससे कुछ दिक्कत महेश शर्मा को हुई लेकिन वह ऐसी दिक्कत नहीं थी कि उनका राजनैतिक कैरियर ही खत्म हो जाता। उनके खिलाफ अभियान चलाने का आलम यह था कि मीडिया के सामने गौतमबुद्ध नगर के पुलिस आयुक्त के खिलाफ अभद्र भाषा के प्रयोग का विडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल किया गया था। उनके विरोधियों ने इस विडियो को काफी तूल दिया था। एक बार तो ऐसा लगने लगा था डॉ शर्मा का राजनीतिक कैरियर खत्म होने ही वाला था लेकिन समय के साथ यह विरोध भी बेदम साबित हो गया। जब विरोधियों के सारे हथियार विफल साबित हो गए तो उन्होंने डा.महेश शर्मा के कैलाश अस्पताल के खिलाफ ही अभियान चलाना शुरू कर दिया। यह अभियान भी बेदम साबित हो गया।
राजनीतिक सफर
डा.महेश शर्मा शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे हैं। वे विभिन्न पदों पर रहते हुए वर्ष 2014 से 14 तक विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं। यहह उनका सार्वजनिक रूप से चुनाव लड़ने का पहला अनुभव था। इस पहले ही अनुभव में वे खरा उतरे। फिर वर्ष 2014 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो एक विधायक के रूप में इनके अनुभवों और कार्यों को ध्याना में रखा गया और भाजपा ने इन्हें लोकसभा का प्रत्याशी घोषित किया। वे इस चुनाव को भारी मतों से जीत गए। इस जीत पर हाईकमान ने संस्कृति, पर्यटन और नागरिक उड्डयन मन्त्रालय में स्वतंत्र प्रभार सौंप कर उन्हें सम्मानित किया। बाद में जब वर्ष 2019 में लोकसभा के चुनाव हुए तो उन्हें फिर दोबारा गौतमबुद्ध नगर संसदीय क्षेत्र से टिकट मिला। इस चुनाव में भी उन्हें अच्छी सफलता मिली। पेशे से चिकित्सक डॉ. शर्मा को इस बार मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया तब उनके विरोधियों ने प्रचारित करना शुरू कर दिया कि पार्टी उनसे नाराज है इसीलिए उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया। लेकिन अब जब उन्हें त्रिपुरा राज्य का संगठन प्रभारी जैसा पद दिया गया है तो विरोधियों को जवाब मिल गया है कि पार्टी उनसे नाराज है या खुश।
शर्मा के सामने चुनौतियां
हालांकि डॉ. शर्मा त्रिपुरा जैसे राज्य का प्रभारी तो बना दिए गए हैं इससे उनके सामने अन्य चुनौतियां भी खड़ी हो गई है। त्रिपुरा, केरल पश्चिम बंगाल वामपंथी दलों के गढ़ रहे हैं। पश्चिम बंगाल में उनका गढ़ ढह गया है। भाजपा ने त्रिपुरा में उनके गढ़ को ध्वस्त कर दिया है। केरल में अभी उनका गढ़ बरकरार है। अब डॉ.शर्मा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह त्रिपुरा में भाजपा का वचस्व बरकरार रखें। उनके सामने वर्तमान लाइन से बड़ी लाइन खींचने की भी चुनौती है। इसके लिए संगठन और सरकार स्तर पर उन्हें कारगर रणनीति बनाने की चुनौती होगी।