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कार्यक्रमः कहानियां ही हमें बनाती हैं, हम सबकी कोई न कोई कहानी जरूर होती हैः दुर्गेश सिंह

भारतीय जन संचार संस्थान में 'शुक्रवार संवाद' कार्यक्रम का किया गया आयोजन, लेखक ने सवालों के जवाब भी दिए

नई दिल्ली। “आज दुनिया में ग्‍लोबल स्टोरी जैसा कोई कॉन्‍सेप्‍ट नहीं है। आपकी ‘पर्सनल’ स्टोरी ही ‘ग्‍लोबल’ स्टोरी बनती है। स्टोरीटेलिंग में दर्शकों को एंगेज करना सबसे महत्वपूर्ण है।” यह विचार चर्चित वेब सीरीज ‘गुल्लक’ के लेखक दुर्गेश सिंह ने भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कहानियां ही हमें बनाती हैं। हम सबकी कोई न कोई कहानी जरूर होती है। अगर अपनी कहानी हम नहीं कहेंगे, तो और कौन कहेगा।

ये लोग रहे मौजूद

इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार, डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग की पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. मीता उज्जैन सहित सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थि‍त रहे।

छोटे शहरों की बड़ी कहानियां

‘छोटे शहरों की बड़ी कहानियां’ विषय पर आयोजित व्याख्यान को संबोधित करते हुए दुर्गेश सिंह ने कहा कि पिछले बीस-तीस सालों में हम ‘मास’ की नहीं, बल्कि ‘क्‍लास’ की कहानियां सुनते आए हैं। ‘गुल्‍लक’ और ‘पंचायत’ जैसी सफलताएं इस बात का सबूत है कि अपनी कहानी कहने का यह बेहतरीन समय है। आज ओटीटी, इंस्‍टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर हर जगह कहानियां कही जा रही हैं और इन क‍हानियों को हमारे-आपके जैसे लोग ही कह रहे हैं।

डिकोड की जरूरत

सिंह ने कहा कि सिनेमा या वेब सीरीज का अपना एक ग्रामर होता है, जिसे डिकोड करने की जरुरत होती है। स्क्रिप्ट राइटिंग एक तकनीकी मामला है। कहानी या उपन्‍यास की तरह इसे आप अपने लिए नहीं लिखते, बल्कि जनता के लिए लिखते हैं। उन्होंने बताया कि किसी भी कहानी में उसके किरदारों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हर सफल वेब सीरीज को सबसे ज्‍यादा उसके किरदारों की वजह से याद किया जाता है। सिंह के अनुसार यात्राएं हमें जीवन में नए-नए किरदारों से मिलाती हैं। इसलिए हमें यात्राएं जरूर करनी चाहिए।

छोटी जगहों से निकलती हैं कहानियां : प्रो. द्विवेदी

इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि जिंदगी में हम सबके पास कहानियां हैं। हम सब अपनी कहानियों के हीरो हैं, पर हम खुद की कहानी नहीं कहते, क्‍योंकि हमें कहानी कहना नहीं आता। ये स्थिति तब है, जबकि हम कहानियों का देश में रह रहे हैं। हम दुनिया को कहानियां देने वाले देश हैं। उन्होंने कहा कि अब हमने जमीन की ओर देखना छोड़ दिया है, अब हम आसमान की ओर देखते हैं। आसमान से, कहानियां नहीं निकलतीं। कहानियां जमीन पर मिलती हैं, छोटी-छोटी जगहों से निकलती हैं। हमें इस पर ध्यान देने की जरुरत है।

प्रश्नों के जवाब दिए

कार्यक्रम के दौरान दुर्गेश सिंह ने विद्यार्थियों के प्रश्नों का जवाब दिए और लेखन से जुड़े महत्वपूर्ण आयामों पर चर्चा भी की।

 

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

Prahlad Verma

उत्तर प्रदेश के मऊनाथ भंजन के कोपागंज कस्बे में जन्म। स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा फैजाबाद (अब अयोध्या) से हासिल करने के बाद वर्ष 1982 से स्तंभकार के तौर पत्रकारिता की शुरुआत। पत्रकारीय यात्रा हिन्दी दैनिक जनमोर्चा से शुरू होकर, नये लोग, सान्ध्य दैनिक प्रतिदिन, स्वतंत्र चेतना, कुबेर टाइम्स, अमर उजाला और विभिन्न क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों से होते हुए दैनिक जागरण पर जाकर रुकी। दैनिक जागरण से ही 15 जनवरी 2021 को सेवानिवृत्त। इसके बाद क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न समाचार पत्रों में निर्वाध रूप से लेखन जारी। अब फेडरल भारत डिजीटल मीडिया में संपादक के रूप में द्वितीय दौर की पत्रकारिता का दौर जारी।

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